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________________ भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......67 18. भ्रमर मुद्रा भ्रमर मुद्रा भौंरा नामक जन्तु से सम्बन्धित मालूम होती है क्योंकि निम्न मुद्रा चित्र में भौंरा जैसी प्रतिकृति का आभास होता है। यह नाट्य मुद्रा हिन्दू परम्परा में देवी-देवताओं के द्वारा या उन्हें दिखाने के लिए भी धारण की जाती है। विद्वानों के मतानुसार इस मुद्रा के निम्न चार में से कोई एक अभिप्राय हो सकता है- 1. चुप रहने का आह्वान 2. भ्रमर 3. सारस और 4. योनि एकता। प्रथम विधि ___ इस मुद्रा को बनाते समय मध्यमा अंगुली को अंगूठे के प्रथम और द्वितीय पौर के मध्यभाग पर रखें, तर्जनी अंगुली को हथेली की ओर झुकायें, अनामिका और कनिष्ठिका को ऊपर की तरफ उठाकर उन्हें पृथक्-पृथक् फैली हुई रखने पर भ्रमर मुद्रा बनती है।48 लाभ क्षमर मुद्रा-1 इसके सुपरिणाम हंसास्य मुद्रा के समान जानने चाहिए।
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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