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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......65
अलपल्लव मुद्रा है।45 लाभ
चक्र- मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं जल तत्त्व ग्रन्थि- प्रजनन ग्रंथि केन्द्र- शक्ति केन्द्र एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- प्रजनन अंग, मल-मूत्र अंग, गुर्दे, मेरूदण्ड, पाँव। 17. चतुर मुद्रा
नृत्य में की जाने वाली एक प्रकार की चेष्टा को चतुर मुद्रा कह सकते हैं।
संभवत: इस मुद्रा के माध्यम से कलाकार अपनी चतुरता दिखलाता है अथवा चतुराई जैसी क्रियाएँ करता है इसलिये इसे चतुर मुद्रा नाम दिया गया है।
यह मुद्रा एक हाथ से की जाती है। विद्वानों के अनुसार यह दुःख, जाति भेद आदि को दर्शाती है। प्रथम विधि __दायीं हथेली को सामने की ओर अभिमुख करते हुए अंगुलियों को ऊपर की तरफ करें, कनिष्ठिका अंगुली को शेष अंगुलियों से पृथक करें तथा अंगूठे से मध्यमा अंगुली के नीचे के भाग का स्पर्श करने पर चतुर मुद्रा बनती है।46 लाभ
चक्र- मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं जल
चतुर मुद्रा-1