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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......61 द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के अनुसार जिस मुद्रा में तर्जनी, मध्यमा एवं अनामिका किंचित झुकी हुई तथा कनिष्ठिका और अंगूठा ऊर्ध्वाभिमुख हो वह मृगशीर्ष
मुद्रा है।40
मृगशीर्ष मुद्रा-2
लाभ
चक्र- मणिपुर, अनाहत चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व प्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- तैजस और आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ीतंत्र, आँतें, हृदय, फेफड़ें, भुजाएं, रक्त संचरण प्रणाली। 15. लांगुल/कांगुल मुद्रा
लांगुल शब्द के अनेक अर्थ हैं पूंछ, लिंग, हल, पुरुष का उपस्थेन्द्रिय लिंग आदि।41