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60... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन प्रथम विधि
दायीं अथवा बायीं हथेली को बाहर की ओर अभिमुख करें, तदनन्तर तर्जनी और मध्यमा को सीधी रखते हए हथेली की तरफ मोड़ें। फिर अंगूठे के अग्रभाग को इन दोनों से स्पर्श करवायें तथा अनामिका और कनिष्ठिका को ऊपर की ओर सीधा रखने से मृगशीर्ष मुद्रा बनती है।39
मृगशीर्ष मुद्रा-1
लाभ
चक्र- अनाहत एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व प्रन्थिपिनियल एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- आनंद एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचरण प्रणाली, ऊपरी मस्तिष्क एवं आँख।