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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......59 द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के अनुसार भी जिस मुद्रा में अंगूठे के साथ सभी अंगुलियाँ मिली हुई और हथेली झुकी हुई हो वह सर्पशीर्ष मुद्रा है।38
सर्पशीर्ष मुद्रा-2 चक्र- सहस्रार, विशुद्धि चक्र तत्त्व- आकाश एवं वायु तत्त्व प्रन्थिपिनियल, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि केन्द्र- ज्योति केन्द्र एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- ऊपरी मस्तिष्क, आंख, नाक, कान, गला, मुँह, स्वरयंत्र। 14. मृगशीर्ष मुद्रा
यहाँ मृगशीर्ष शब्द का अभिप्रेत मृग (हिरन) के मुख से है। इस मुद्रा में हिरन के मुख जैसी आकृति दिखायी देती है अत: इसे मृगशीर्ष मुद्रा कहते हैं।
मुद्रा स्वरूप के अनुसार यह मुद्रा हिरण के मुखभाग की सूचक है। नाट्य या नृत्य में मृग की विशेषताओं को बताने अथवा उपमा अलंकार के प्रयोजन से यह मुद्रा की जाती होगी।