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58... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन 13. सर्पशीर्ष मुद्रा
यह मुद्रा साँप के सिर के समान होती है अत: इसे सर्पशीर्ष मुद्रा कहते हैं। भारतीय कला में नागिन आदि के नृत्य प्रसिद्ध हैं।
नाटक आदि में उपयोगी यह मुद्रा साँप के धीरेपन की और प्रसन्नभावों के अभिव्यक्ति की सूचक है। प्रथम विधि
दायीं हथेली को सामने की तरफ करें, फिर अंगूठे के प्रथम पोर के हिस्से को तर्जनी अंगली के निचले पोर के समभाग में सटाकर रखें तथा सभी अंगुलियों को हथेली की तरफ किंचित झुकाने से सर्पशीर्ष मुद्रा बनती है।37
सर्पशीर्ष मुद्रा-1 लाभ
चक्र- मणिपुर चक्र तत्त्व- अग्नि तत्त्व अन्थि- एड्रीनल एवं पैन्क्रियाज केन्द्र- तैजस केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ी तंत्र, आँतें।