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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......55 और कनिष्ठिका को हथेली की तरफ मोड़ने से सूचीमुख मुद्रा बनती है।
यह मुद्रा छाती के स्तर पर धारण की जाती है।33
लाभ
चक्र- मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व ग्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन केन्द्र- तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ी तंत्र, आँतें, मल-मूत्र अंग, गुर्दे, प्रजनन अंग। द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के अनुसार कटकामुख मुद्रा में से तर्जनी को ऊपर कर दी जाये तो वह सूच्यास्य मुद्रा कहलाती है।34
सूच्यास्य मुद्रा-2
लाभ
चक्र- आज्ञा एवं मणिपुर चक्र तत्त्व- आकाश एवं अग्नि तत्त्व ग्रन्थिपीयूष, एड्रीनल एवं पैन्क्रियाज केन्द्र- दर्शन एवं तैजस केन्द्र विशेष प्रभावित