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54... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
लाभ
चक्र- आज्ञा, सहस्रार एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- आकाश एवं वायु तत्त्व ग्रन्थि- पीयूष, पिनियल, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रंथि केन्द्र- दर्शन, ज्योति एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मस्तिष्क, स्नायुतंत्र, आंख, नाक, कान, गला, मुख, स्वर तंत्र। 11. सूच्यास्य (सूचीमुख) मुद्रा
इस मुद्रा नाम के अनुसार सुई का मुख, सूचीमुख कहलाता है। हिन्दी शब्द कोश के अनुसार चूहे का मुँह सुई की तरह पतला और नुकीला होता है उसे सूची मुख वाला कहते हैं।32
मुद्रा स्वरूप के अनुसार यह मुद्रा लंबे तथा पतले मुख वाले प्राणी अथवा वस्तु की सूचक होनी चाहिए। किसी को अपने समीप बुलाने के लिए अथवा किसी की तरफ इशारा करने के लिए भी इस मुद्रा का उपयोग होता है। इस मुद्रा में तर्जनी अंगुली की गति होती है जो आमन्त्रित करने का संकेत करती है। ___ यह मुद्रा किसी परम प्रिय व्यक्ति से मिलने की उत्कंठा को भी अभिव्यक्त करती है। नाट्य में उपरोक्त भावों को दर्शाने के उद्देश्य से यह मुद्रा की जाती हो।
यह असंयुक्त मुद्रा, संयुक्त मुद्रा के रूप में भी की जा सकती है। प्रथम विधि __दायीं अथवा बायीं हथेली को, प्रकारान्तर से दोनों हथेलियों को सामने की ओर अभिमुख करें, तर्जनी और अंगूठे को ऊपर की ओर सीधा रखें तथा मध्यमा, अनामिका
सूच्यास्य मुद्रा-1