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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......53 तत्पश्चात तर्जनी और मध्यमा को किंचित झुकाते हुए इन दोनों के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से संस्पर्शित करें तथा अनामिका और कनिष्ठिका को हथेली की तरफ मोड़ देने से कटकामुख मुद्रा बनती है।30 लाभ
चक्र- अनाहत एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- वायु तत्त्व ग्रन्थि- थायमस, थायरॉइड, पेराथायरॉइड केन्द्र- आनंद एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- नाक, कान, गला, मुँह, स्वर तंत्र, हृदय, फेफड़े, भुजाएँ, रक्त संचरण प्रणाली। द्वितीय विधि __नाट्य शास्त्र के अनुसार भी जिस मुद्रा में तर्जनी और मध्यमा के अग्रभाग अंगुष्ठ के अग्रभाग से मिले हुए तथा अनामिका और कनिष्ठिका हथेली के भीतर झुकी हुई हो, वह कटकामुख मुद्रा है।31
कटकामुख मुद्रा-2