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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप... ...51
लाभ
चक्र- स्वाधिष्ठान एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- जल एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि- प्रजनन एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- स्वास्थ्य एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मल-मूत्र अंग, गुर्दे, प्रजनन अंग, निचला मस्तिष्क एवं स्नायु
तंत्र।
द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के अनुसार जिस मुद्रा में तर्जनी और अंगूठे के अग्रभाग परस्पर में मिले हुए तथा शेष अंगुलियाँ मुट्ठी रूप में झुकी हुई हो वह कपित्थ मुद्रा है।27
कपित्य मुद्रा-2
चक्र- मूलाधार, आज्ञा एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व अन्थि- प्रजनन, पीयूष एवं पिनियल ग्रंथि केन्द्र- शक्ति, दर्शन, एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- गुर्दा, मेरूदण्ड, पाँव, मस्तिष्क, स्नायु तंत्र, आंखें।