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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......47 तैजस, शक्ति एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, प्रजनन तंत्र, यकृत, तिल्ली, गुर्दे, आँतें, निचला मस्तिष्क, आँखें। द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के अनुसार भी जिस मुद्रा में हाथ की अंगुलियाँ हथेली के मध्य तक झुकी हुई हो और उनके ऊपर अंगूठा हो तो वह मुष्टि मुद्रा है।22
मुष्टि मुद्रा-2
लाभ
चक्र- मूलाधार, मणिपुर एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- पृथ्वी, अग्नि एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि- एड्रीनल, प्रजनन एवं पीयूष ग्रंथि केन्द्र- शक्ति, तैजस एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, पैर, पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ी तंत्र, आँतें, निचला मस्तिष्क एवं स्नायु तंत्र।