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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......45
लाभ
चक्र- मूलाधार एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व प्रन्थि- प्रजनन एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति केन्द्र, ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरुदण्ड, गुर्दे, ऊपरी मस्तिष्क एवं आँख। द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के अनुसार जिस मुद्रा में तर्जनी और अनामिका किंचित झुकी हुई, अंगूठा कुंचित तथा शेष अंगुलियाँ ऊर्ध्वाभिमुख हो वह शुकतुण्ड हस्त
मुद्रा है।20
शुकतुण्ड मुद्रा-2 लाभ __चक्र- विशुद्धि चक्र एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- वायु एवं जल तत्त्व अन्थि- थायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- विशुद्धि एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- नाक, कान, गला, मुँह, स्वर तंत्र, मलमूत्र अंग, गुर्दे, प्रजनन अंग।