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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप...
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5. अराल मुद्रा (द्वितीय)
अराल मुद्रा का एक अन्य प्रकार भी है जिसका अन्तर्भाव नृत्तहस्त मुद्राओं में होता है। यहाँ अराल शब्द का अभिप्राय उन्मत्त हाथी या कुटिलता से होना चाहिए।
नाटक आदि में किसी की कुटिलता दर्शाने के लिए अथवा उन्मत्त हाथी एवं व्यक्ति की उन्मत्तता दर्शाने के लिए यह मुद्रा की जाती होगी । प्रथम विधि
इस मुद्रा की रचना पूर्व मुद्रा के समान ही की जाती है। विशेष इतना है कि मध्यमा अंगुली थोड़ी सी हथेली की तरफ झुकी हुई रहती है । 18
अराल मुद्रा (द्वितीय)