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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप... ...35
2. त्रिपताका मुद्रा
त्रिपताका का दूसरा नाम त्रिपिटक, त्रिपिताका भी है। इस मुद्रा में तीन अंगुलियाँ ऊपर की ओर फैली हुई रहती है इसलिए इसे त्रिपताका मुद्रा कहा गया है।
इस मुद्रा में फैली हुई तीन अंगुलियाँ ध्वजा के तीन भागों की सूचक है। यह हस्त मुद्रा नाटक आदि में कलाकारों के द्वारा धारण की जाती है । एक हाथ से प्रयुक्त यह मुद्रा ताज, वज्र, प्रकाश आदि की भी सूचक है। प्रथम विधि
दायें हाथ की कनिष्ठिका, मध्यमा, तर्जनी और अंगूठा को ऊपर की ओर उठाते हुए फैलायें, अनामिका अंगुली को हथेली की तरफ मोड़ें तथा हथेली को सामने की ओर रखने से त्रिपताका मुद्रा बनती है। 7
यह मुद्रा सामान्यतया छाती के स्तर पर धारण की जाती है, किन्तु शिवनटराज के द्वारा कटिसम स्तर पर धारण की जाती है।
त्रिपताका मुद्रा - 1