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32 ... मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में
आक्रान्त हो जाता है और मानव देह रोगों से घिर जाता है जबकि मुद्रा योग के द्वारा पंच तत्त्वों को संतुलित रखते हुए चराचर विश्व को स्वस्थ रखा जा सकता है।
दूसरा तथ्य यह है कि हाथ की दसों अंगुलियों में पंच तत्त्वों के प्रतिनिधित्व की क्षमता है। मुद्रा विज्ञान के अनुसार प्रत्येक अंगुली से अलगअलग प्रकार का विद्युत प्रवाह निसृत होता है । उत्कृष्ट योग साधना के द्वारा विद्युत प्रवाह को बढ़ाया भी जा सकता है और उसके अच्छे-बुरे, शुभ-अशुभ प्रभाव भी देखे जा सकते हैं।
अंगुलियाँ ऊर्जा का नियमित स्रोत होने से एन्टीना का कार्य करती हैं। इस तरह हस्त मुद्राओं के माध्यम से अंगुलियों को मिलाने, मरोड़ने, दबाने और कुछ समय तक आकृति बनाये रखने से तत्त्वों में परिवर्तन होता है।
1. नियमत: किसी भी अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाने पर बढ़ा हुआ तत्त्व संतुलित हो जाता है।
2. अंगूठे के अग्रभाग को किसी भी अंगुली के मूल भाग से लगाने पर शरीर में उस तत्त्व की अभिवृद्धि होती है।
3. किसी भी अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के मूलभाग (निचले हिस्से) पर रखने से उस अंगुली का तत्त्व घटने लगता है। इस तरह अंगुलियों के द्वारा शरीर में पंच तत्त्व को घटाने-बढ़ाने का साधारण नियम है।
इस प्रकार विभिन्न मुद्राओं के द्वारा शारीरिक तत्त्वों को घटाया-बढ़ाया जा सकता है तथा शरीर सन्तुलन के साथ-साथ मन, वाणी एवं चेतना को भी स्वस्थता का बाना पहनाया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति की स्वस्थता ही वैश्विक शान्ति का मूल आधार है । उक्त वर्णन के आधार पर अनुभव कर सकते हैं कि हाथों से बनाई गई मुद्राएँ कितनी रहस्यमयी हो सकती है।
शरीर शास्त्रियों के अनुसार शरीर के सक्रिय अंगों में हाथ प्रमुख है। हथेली में एक विशेष प्रकार की प्राण ऊर्जा अथवा शक्ति का प्रवाह निरन्तर होता रहता है इसी कारण शरीर के किसी भी भाग में पीड़ा या अस्वस्थता होने पर हाथ सहज ही वहाँ पहुँच जाता है । अंगुलियों में संवेदनशीलता भी अधिक होती है। इसका साक्षात प्रमाण यह है कि नाड़ी शोधन अंगुलियों से ही किया जाता है इससे मस्तिष्क में नब्ज की कार्यविधि का संदेश शीघ्र पहुँचता है। • रेकी