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________________ मुद्रा योग के प्रकार एवं वैज्ञानिक परिशीलन ...31 प्रकार किसी तत्त्व के सभी गुणधर्म उसके सूक्ष्मतम परमाणु में पाये जाते हैं उसी प्रकार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के सभी गुण मानव शरीर में हैं, किन्तु उनका साक्षात्कार मुद्रा योग जैसी साधनाओं द्वारा ही सम्भव है। हाथों में पाँच ही अंगुलियाँ क्यों? यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि साधारण मानव के हाथ में पाँच ही अंगुलियों क्यों है? कम या अधिक क्यों नहीं? कोई कह सकता है कि किसीकिसी के छ: भी होती है, किन्तु वह छठी अंगुली तो बिल्कुल बेकार होती है। ___ इसके समाधान में कहा जा सकता है कि इस दुनियाँ में पांच तत्त्व, संगीत के सात स्वर, इन्द्रधनुष के सात रंग, योग के सात चक्र, मनुष्य के शरीरस्थ सात कोष, सूर्य के सात घोड़े, अग्नि की सात जिह्वायें आदि अनेकों बातें भारतीय शास्त्र में रहस्यपूर्ण हैं। इसी प्रकार पाँच अंगुलियों का भी अपना रहस्य है। विद्वानों के अनुसार शरीरस्थ पाँच तत्त्वों का नियोजन पाँच अंगुलियों के माध्यम से होता है। हस्त मुद्रा का रहस्य विज्ञान __मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्तियों के अनुसार शरीर की जितनी भी आकृतियाँ निर्मित होती हैं वह मुद्रा कहलाती है। दूसरे शब्दों में हमारी सहज प्रवृत्तियों में सम्पूर्ण शरीर गतिशील रहता है। उस समय हाथ, पाँव, आँख, मुख आदि प्रत्येक अंग-उपांगों से मुद्राएँ (हाव-भाव रूप आकृतियाँ) बनती-मिटती रहती है। इससे निर्णीत होता है कि मुद्राएँ शरीरस्थ सभी अवयवों से सम्बन्ध रखती है अथवा किसी भी अंग-उपांग से बनायी जा सकती है। फिर भी प्रश्न उठता है कि हस्त मुद्राओं का प्रचार, प्रयोग एवं प्रसिद्धि सर्वाधिक क्यों? • इस सम्बन्ध में सापेक्ष दृष्टि से विचार करें तो कई रहस्य स्मृति पटल पर उभर आते हैं। सबसे पहला तो यह है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पांच तत्त्वों के संयोग से निर्मित है। आधुनिक रसायन विज्ञान ने यद्यपि इन तत्त्वों को 106 से भी अधिक तत्त्वों में विभाजित कर दिया है, किन्तु मुख्य रूप से ये तत्त्व पाँच ही है- अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल। पृथ्वी आदि पाँचों ब्रह्माण्ड की ईकाई होने से मानव शरीर भी पंच तत्त्वों से ही बना हुआ है। जब पाँच तत्त्वों में विकृति आती है तब विश्व प्रलय, अतिवृष्टि, भूकम्प आदि उपद्रवों से
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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