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मुद्रा योग के प्रकार एवं वैज्ञानिक परिशीलन ...33 चिकित्सा में हथेली का ही उपयोग होता है। • रत्न चिकित्सा में विभिन्न प्रकार के नगीने अंगूठी के द्वारा अंगुलियों में ही पहने जाते हैं। • एक्युप्रेशर चिकित्सा के अनुसार सम्पूर्ण शरीर के संवेदन बिन्दु, हथेली में होते हैं। • सुजोक बायल मेरेडियन के सिद्धान्तानुसार अंगुलियों से ही शरीर के विभिन्न अंगों में प्राण ऊर्जा के प्रवाह को नियन्त्रित और संतुलित किया जा सकता है। • हस्त रेखा में पारंगत व्यक्ति हथेली देखकर ही किसी की त्रैकालिक घटनाओं को बतला सकता है। • शीतकाल में गर्मी का ताप लेते समय हथेलियों को ही सामने करते हैं और उनके गर्म होते ही समग्र शरीर में उष्मा का संचार हो जाता है।
भारतीय परम्परा के अनुसार हाथ में तर्पण तीर्थों का विशेष स्थान माना गया है। अंग के अग्रभाग को देवतीर्थ, अंगूठा और तर्जनी के बीच के स्थान को पितृ तीर्थ, कनिष्ठिका अंगुली के मूल से दस सेन्टीमीटर नीचे के भाग को कायतीर्थ, अनामिका और मध्यमा के मूल से दस सेंटीमीटर नीचे (हथेली के मध्य भाग) को अन्ति तीर्थ तथा मणिबन्ध से दस सेंटीमीटर ऊपर (अंगुष्ठ के मूल भाग) को ब्रह्मतीर्थ कहा गया है। अधिकांश विद्वान नित्य सन्ध्या के उपरान्त देव, ऋषि, पितृ आदि तर्पण नियमित रूप से किया करते हैं। यहाँ यह भी एक मननीय विषय है कि तर्पण किस समय, किस प्रकार, किस स्थिति में, किन वस्तुओं के साथ करना चाहिए। इसी के साथ तर्पण क्रिया में हाथ और शरीर की मुद्राएँ किस तरह होनी चाहिए? .
भारतीय सनातन धर्म में तर्पण, मार्जन, न्यास और मुद्राएँ आदि कई प्रकार की सूक्ष्म विधियाँ प्रचलित हैं। इस विषय में वैदिक ऋषियों ने गहरे अनुसंधान करने के पश्चात ही उन्हें साधकों के सामने प्रस्तुत किया।
इस वर्णन से निर्विवाद सिद्ध होता है कि हाथ के पृथक्-पृथक् भागों से भिन्न-भिन्न प्रकार का ऊर्जा प्रवाह नि:सृत होता है।
मुद्रा विज्ञान के अनुसार भी यह स्पष्ट किया गया है कि हाथ की प्रत्येक अंगुलियों और हथेली के विभिन्न भागों से अलग-अलग प्रकार का विद्युत प्रवाह बहता है। इस तथ्य को भलीभाँति जानने के बाद ही मुद्रा प्रणेताओं ने भोजन करने, यज्ञ करने, उपासना करने, तिलक करने, आशीर्वाद या श्रापादि देने की भिन्नभिन्न मुद्राएँ प्ररूपित की। जैसे शरीर को निर्मल बनाये रखने के लिए अपान मुद्रा (अंगूठा, मध्यमा एवं तर्जनी का संयोग) से भोजन करना चाहिए। शरीर की नष्ट