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________________ मुद्रा योग के प्रकार एवं वैज्ञानिक परिशीलन ...27 तरह की होती है उनका स्वरूप भी तदाकार हो जाता है। इस तरह वर्गणाओं का मुद्रा के साथ संयोगजन्य सम्बन्ध है। जैसे व्यक्ति वातावरण से प्रभावित होता है वैसे ही व्यक्ति के स्नायु तंत्र, ग्रंथि तंत्र मुद्रा से प्रभावित होते हैं। वर्गणा और मुद्रा के पारस्परिक सम्बन्ध की दूसरी विशेषता यह है कि पुद्गल परमाणुओं का समूह अर्थात वर्गणाएँ जिस आकृति (मुद्रा) के रूप में प्रवेश करती है, निर्धारित अवधि तक उसी आकार में स्थिर रहते हुए अपना कार्य करती हैं। तदनन्तर तदाकार आकृतियाँ बनाकर शरीर से बाहर निकलती हैं। उन आकृतियों से न केवल वातावरण प्रभावित होता है अपितु व्यक्ति का अन्त:स्थल भी प्रभावित होता है। इस अन्तिम चर्चा से बोध होता है कि जब अचेतन परमाणु चेतन मन (सूक्ष्म मुद्रा) से प्रभावित हो सकते हैं और अचेतन परमाणुओं का चेतन मन पर प्रभाव पड़ता है तब जीवन विकास के इच्छुक साधकों को सदैव अशुभ से शुभ और शुभ से शुद्ध भावधारा में सुस्थिर रहने का प्रयत्न करना चाहिए, क्योंकि शुभाशुभ विचारों के अनुसार ही आभामण्डल निर्मित होता है। देवी-देवता और मुद्रा __आदियुग से ही मुद्राओं का महत्त्व देखा जाता है। रचनाकारों ने मुद्रा शब्द को परिभाषित करते हुए कहा है कि जो देवताओं को प्रसन्न करती है, दुष्टों का शमन करती है और पापों का नाश करती है वह मुद्रा है। मुद्रा का अभिप्राय देवता से निकटता का सम्बन्ध स्थापित करना है। मुद् मोदने धातु से निष्पन्न मुद्रा शब्द देवी-देवता को तुष्ट करने के अर्थ में ही प्रयुक्त है। जैन-जैनेतर ग्रन्थों में देवता को प्रसन्न करने एवं असुर देवों की शक्तियों को शमित करने से सम्बन्धित अनेक मुद्राएँ प्राप्त होती हैं। इससे मुद्रा के शाब्दिक एवं सांकेतिक अर्थ की पूर्ण रूप से पुष्टि हो जाती है। प्राचीन युग में किसी भी देवी-देवताओं की आराधना करने से पूर्व उनका आह्वान (नामोच्चारण पूर्वक आमन्त्रण) करके, उसे अपनी प्रिय मुद्रा दिखायी जाती थी। उसके पश्चात ही जाप-पूजा आदि अनुष्ठान प्रारम्भ किये जाते थे। विद्यादेवियाँ, दिशापालक देवता, क्षेत्रपाल देवता, चौसठ योगिनियाँ आदि की अपनी भिन्न-भिन्न मुद्राएँ हैं। प्राचीन प्रतिष्ठाविधियों एवं कर्मकाण्ड प्रधान ग्रन्थों में समस्त मुद्राएँ आज भी सुरक्षित है।
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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