________________
26...मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में 1. औदारिक शरीर- रक्त-अस्थि, मांस-मज्जा से निर्मित मनुष्य एवं तिर्यंच
का शरीर। 2. आहारक शरीर- विशिष्ट लब्धि सम्पन्न चरम देहधारी मुनि द्वारा निर्मित
शरीर। 3. वैक्रिय शरीर- विशिष्ट पुद्गल परमाणुओं से निर्मित देवता एवं नारकी
जीवों का शरीर। 4. तेजस शरीर- विशिष्ट तरह की ऊर्जा द्वारा निर्मित चारों गति के जीवों का
भोजन पचाने वाला शरीर। 5. कार्मण शरीर- कर्म परमाणुओं से निर्मित शरीर। 6. भाषा वर्गणा- भाषा के ग्रहण करने योग्य पुद्गल परमाणुओं का समूह। 7. मनो वर्गणा- स्वयं के और दूसरों के मन को जाना जा सकें ऐसे पुद्गल
परमाणुओं का समूह। 8. श्वासोच्छ्वास वर्गणा - श्वासोश्वास के लिए उपयोगी पुद्गल परमाणुओं
का समूह।
ये अष्ट वर्गणाएँ स्थूल और सूक्ष्म दो प्रकार की होती है। सूक्ष्म वर्गणा चार स्पर्शीय परमाणु वाली एवं इतनी सूक्ष्म होती है कि इस पुद्गल परमाणु का कोई विभाग नहीं कर सकता अत: अविभाजित पुद्गल परमाणु को ही सूक्ष्म वर्गणा कहा जाता है। सूक्ष्म वर्गणा में शीत-उष्ण, स्निग्ध-रूक्ष ऐसे स्पर्श पुद्गल के चार गुण रहते हैं।
स्थूल वर्गणा में स्पर्श पुद्गल के आठों गुण शीत-उष्ण, स्निग्ध-रुक्ष, गुरु-लघु, मृदु और कठोर विद्यमान रहते हैं। सूक्ष्म वर्गणा के परमाणु जब स्कन्ध रूप में परिणत होते हैं तब वे भी अष्ट स्पर्शी बन जाते हैं।
यहाँ वर्गणा सिद्धान्त की चर्चा करने का मकसद यह है कि वर्गणा और मुद्रा में परस्पर सम्बन्ध है। __ प्रत्येक जीव अपने-अपने योग्य वर्गणाओं को आवश्यकता के अनुसार ग्रहण करता रहता है। जिस समय हम पुद्गल परमाणु के स्कन्ध रूप वर्गणा को ग्रहण करते हैं उस समय हमारे भावों के अनुरूप मुद्रा निर्मित होती है जिसे चर्मचक्षुओं से प्रत्यक्ष देख पाना संभव नहीं है। वह भावभंगिमा अत्यन्त सूक्ष्म होती है। विशेषता यह है कि वर्गणाओं के ग्रहणकाल में मनोदैहिक आकृति जिस