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मुद्रा योग के प्रकार एवं वैज्ञानिक परिशीलन ...25 बतलाते हुए कहा गया है कि प्रत्येक साधक को शरीर शुद्धि एवं मानसिक पवित्रता के लिए सात साधन जीवन व्यवहार में सबसे पहले अपनाने चाहिएशोधन, दृढ़ता, स्थैर्य, धैर्य, लाघव, प्रत्यक्ष और निर्लिप्त। इनमें शोधन (शुद्धि) के लिए षट्कर्म (धौति, वस्ति, नेति, लौकिकी, त्राटक और कपाल भाँति), दृढ़ता के लिए आसनों का अभ्यास, स्थिरता वृद्धि के लिए मुद्रायोग, धैर्य अभिवृद्धि के लिए प्रत्याहार, लघुता भाव विकसित करने के लिए प्राणायाम, ध्येय का साक्षात्कार करने के लिए ध्यान और सर्व पदार्थों से निर्लिप्त होने के लिए समाधि का अभ्यास करना चाहिए। इस क्रम से हठयोग की साधना करने वाला निश्चित शुद्ध अवस्था को प्राप्त करता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।17
उपरोक्त विवेचन से सुस्पष्ट होता है कि मुद्राएँ हठयोग का एक अंग है। हठयोग का दायरा विस्तृत है जबकि मुद्रा उस सागर का एक बिन्दु रूप है। इसके बावजूद भी मुद्रा का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है। यों कहा जाए तो मुद्रा हठयोग का अत्यावश्यक योगांग है। इस योग के अभाव में हठयोग पूर्णयोग नहीं कहा जा सकता है। हठयोग की समग्र साधना में मुद्राएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हठयोग और मुद्रा में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। जहाँ हठयोग वहाँ मुद्रायोग और जहाँ मुद्रायोग वहाँ हठयोग अवश्यंभावी होता है। ____ यहाँ इतना स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि हठयोग सम्बन्धी मुद्राओं एवं अन्य मुद्रा प्रकारों में पारस्परिक भिन्नता है। इस शीर्षक के अन्तर्गत हठयोग सन्दर्भित मुद्राओं को प्रधानता दी गई है और इससे सम्बन्धित मुद्रा साधना के सभी प्रकार कठिन हैं। सामान्य साधक इस योग को नहीं साध सकता है। इस विद्या को अनुभवी गुरु के मार्ग दर्शन से ही प्राप्त किया जा सकता है। योगियों द्वारा खोजी गई ये मुद्राएँ अदभुत हैं तथा शरीर में चैतन्य तत्त्व की अनुभूति कराने वाली कुंजी है। जबकि अन्य मुद्राएँ जैसे ज्ञान मुद्रा, शंख मुद्रा, प्राण मुद्रा, वरूण मुद्रा, सूर्य मुद्रा, आकाश मुद्रादि सहज रूप से की जा सकती है। वर्गणा और मुद्रा
___ वर्गणा जैन धर्म का पारिभाषिक शब्द है। सजातीय परमाणु समूह को वर्गणा कहते हैं। वर्गणाएँ आठ प्रकार की होती हैं
शरीर सम्बन्धी पाँच तथा भाषा, मन एवं श्वासोश्वास की एक-एक इस तरह कुल आठ है।