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________________ 24... मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में ऊर्ध्वमुखी बनाया जा सकता है । इस प्रकार सुप्त कुण्डलिनी शक्ति को जागृत किया जा सकता है। हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है कि कुंडलिनी शक्ति जागृत हुए बिना चक्रों का भेदन नहीं होता है । मूलाधार चक्र स्थित सुषुप्त शक्ति को उजागर करने का एक उपाय मुद्राओं का अभ्यास है। मुद्राएँ सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करती हैं इससे प्राण शरीर सक्रिय हो जाता है । इस चर्चा के आधार पर कहा जा सकता है कि मुद्राएँ आसनों का विकसित रूप है। आसनों में इन्द्रियाँ प्रधान और प्राण गौण होते हैं जबकि मुद्रा प्रयोग में इन्द्रियाँ गौण और प्राण प्रधान होते हैं। निम्न तालिका से यह बात अधिक सुस्पष्ट होती है। आसन स्थूल शरीर प्रधान इन्द्रिय प्रधान अष्टांगों में तीसरा स्थान मुद्रा सूक्ष्म भाव प्रधान प्राण प्रधान अष्टांगों में आसन और प्राणायाम के बीच की अवस्था | 13 हठयोग और मुद्राएँ योगी पुरुषों द्वारा आचरित एवं निर्दिष्ट अनेक साधनाओं में से एक कठोर साधना का नाम है हठयोग । 'हठ' शब्द में प्रयुक्त हकार और ठकार क्रमशः सूर्यनाड़ी और चन्द्रनाड़ी के द्योतक हैं। 14 सूर्यनाड़ी और चन्द्रनाड़ी का पारस्परिक संयोग, दोनों नाड़ियों की एकरूपता तथा दोनों की द्वन्दात्मक स्थिति का सम्मिलन हठयोग कहलाता है। 15 यहाँ सूर्यनाड़ी का अभिप्राय पिंगला नाड़ी से है तथा चन्द्रनाड़ी का अभिप्राय इड़ा नाड़ी से है। इन अभिप्रायार्थ नाड़ियों का वास क्रमशः शरीर के दक्षिण एवं वाम भाग में माना गया है। 16 हठयोग साधना के छः अथवा सात प्रकार माने गये हैं। इनमें सात अंगों की परिकल्पना अधिक उपयुक्त प्रतीत होती है। वे सात प्रकार निम्न हैं- 1. षटकर्म 2. आसन, 3. मुद्रा, 4. प्रत्याहार, 5. प्राणायाम 6. ध्यान और 7 समाधि । घेरण्ड संहिता में हठयोग के इन चरणों का उद्देश्य
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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