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________________ मुद्रा योग के प्रकार एवं वैज्ञानिक परिशीलन ...21 हो वह उस स्थान से उठे, तत्पश्चात 48 मिनट तक शीलनिष्ठ स्त्रियों अथवा आत्म साधकों को उस स्थान पर बैठना-सोना नहीं चाहिए। कारण कि वह स्थान निर्धारित अवधि तक उस व्यक्ति के शुभाशुभ परमाणुओं से परिव्याप्त रहता है। इस वर्णन से स्पष्ट होता है कि जन सामान्य की जीवन शैली के साथ मुद्रा का प्रगाढ़ सम्बन्ध है। भावनात्मक मूल्य-भाव परिवर्तन की दृष्टि से भी मुद्रा योग आवश्यक महसूस होता है। अनुभवी सन्तों का कहना है कि जब तीव्र क्रोध का उदय हो, तब कुछ क्षण कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े हो जाना चाहिए। उस स्थिति में क्रोध स्वतः शान्त हो जाता है। जब अहंकार की भावना जागृत होती हो उस समय किसी पूज्य की प्रतिकृति के सम्मुख दोनों हाथ जोड़कर एवं मस्तक झुकाकर खड़े हो जाना चाहिए, उस विनीत मुद्रा से अहंकार तुरन्त विलीन हो जाता है। जब मन में वासना के संस्कार जागृत हो रहे हो उस समय पद्मासन मुद्रा में बैठ जायें तो वासना शान्त हो जाती है। जब किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति राग भाव की तीव्रता बढ़ रही हो उस समय सिद्धासन या सिद्धयोनि में बैठने से राग वैराग्य में परिवर्तित हो जाता है। जब वायु विकृति के कारण जी मिचला रहा हो उन क्षणों में वज्रासन मुद्रा में बैठने से तुरन्त फायदा होता है। इस तरह भावनात्मक स्तर पर भी मुद्रा योग की उपादेयता सिद्ध होती है। शारीरिक मूल्य- मानव शरीर प्रकृति की सर्वोत्तम कृति है। यह सम्पूर्ण प्रकृति एवं हमारा शरीर पंच तत्त्वों से निर्मित है। अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल इन पाँच तत्त्वों की विकृति के कारण ही प्रकृति में असंतुलन और शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं, किन्तु मानव शरीर की पाँचों अंगुलियाँ पंच तत्त्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिन्हें इन अंगुलियों की सहायता से घटा-बढ़ाकर संतुलित किया जा सकता है। ____ मुद्रा विज्ञान के अनुसार हमारी अंगुलियाँ ऊर्जा का नियमित स्रोत होने के साथ-साथ एन्टीना का कार्य करती हैं। मुद्राओं के माध्यम से अंगुलियों को मिलाने, दबाने, स्पर्श करने, मरोड़ने तथा कुछ समय तक विशेष आकृति बनाये रखने से तत्त्वों में परिवर्तन होता है। अंगूठे को तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका के मूल में लगाने से उस अंगुली से सम्बन्धित तत्त्व में वृद्धि होती है, अंगुलियों के प्रथम पौर में स्पर्श करने पर तत्त्व सन्तुलित होता
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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