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________________ 20...मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में यह कुण्डलिनी शक्ति हठयोग प्रधान मुद्राओं के माध्यम से अतिशीघ्र जागृत होती है। हठयोग मुद्राओं का मूलभूत दृष्टिकोण इसी से सम्बन्धित जान पड़ता है। इसके अतिरिक्त अन्य अनेक मुद्राएँ भी इसके जागरण में सहयोगी बनती हैं। इस तरह मुद्रा विज्ञान साधनात्मक मूल्यों को बढ़ाता है। ___ मानसिक मूल्य- मुद्रा मानसिक सूक्ष्म वृत्ति है। यह अन्तर्मन को मापने का सही थर्मामीटर है, स्थूल विचारों को टटोलने का दिशा यन्त्र है। मुद्रा और मन के बीच तादात्म्य सम्बन्ध है। श्रेष्ठ मुद्राएँ मन को अत्यधिक प्रभावित करती हैं। जैसे कि पद्मासन में बैठा हुआ व्यक्ति चाहे जितना यत्न करें तदुपरान्त किसी की हत्या नहीं कर सकता। इसका रहस्य यह है कि पद्मासन की प्रशस्त मुद्रा हिंसाजन्य अप्रशस्त भावों को टिकने ही नहीं देती। हम कल्पना कर सकते हैं कि एक हत्यारे की भाव मुद्रा हत्या करने से पूर्व किस तरह की होती है। हत्या करने के लिए तत्पर व्यक्ति के हाव-भाव कुछ समय पहले से ही उस रूप बन जाते हैं उसके पश्चात ही किसी प्रकार का दुष्कर्म हो पाता है। बाह्य स्तर पर जब व्यक्ति की आँखे लाल अंगारे की तरह दहकने लगती है, मुख क्रोध से रक्तवर्णी हो जाता है, स्वयं के हाथों एवं पैरों में एक विशेष प्रकार का आवेग महसूस होने लगता है, छाती अकड़ जाती है,गर्दन टाईट हो जाती है इन स्थितियों में हत्या के भाव उठते हैं और हत्या सम्भव होती है। ___ हम अनुभव करें जैसे ही मनस पटल पर चिंताएँ उभरने लगती है टेन्शन का चक्र प्रारम्भ होता है वैसे ही हाथ सिर पर जाकर स्थिर हो जाता है। मन में जैसे ही अभिमान की तरंगे प्रसरित होने लगती है स्कन्ध अपने आप ऊपर-नीचे होने लगते हैं। किसी के प्रति प्रेम उमड़ने पर आँख की पुतली तिरछी हो जाती है। किसी के प्रति घृणा के भाव पैदा होने पर घ्राणेन्द्रिय स्वयमेव सिकुड़ने लगती है इस तरह मनोजगत का मुद्रा पर और मुद्राजगत का मन पर तुरन्त असर पड़ता है। जैनागमों में बताया गया है कि साधुओं को कभी भी उल्टा और साध्वियों को कभी भी सीधा नहीं सोना चाहिए। क्योंकि लिंग की अपेक्षा पुरुष द्वारा उल्टा शयन करने पर एवं स्त्री द्वारा सीधा शयन करने पर कामवासनाएँ जागृत होने की पूर्ण संभावना रहती हैं। यह भी एक प्रकार की मुद्राएँ मानी गई हैं। इस तथ्य को वैज्ञानिक भी स्वीकार करने लगे हैं कि जिस आसन या स्थान पर पुरुष बैठा
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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