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________________ 18...मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में के समान सफलता देने वाला अन्य कोई कर्म नहीं है। जो साधक नियमित तीन घण्टा मुद्राभ्यास करते हैं वे मृत्यु विजेता बन जाते हैं। मुद्रा योग की आवश्यकता एवं उपादेयता वर्तमान में वैचारिक एवं प्राकृतिक प्रदूषण बढ़ रहा है। इसका स्पष्ट प्रभाव मनुष्य के शरीर, आचार, विचार एवं व्यवहार जगत पर देखा जा सकता है। मुद्रा योग Switch Board की भाँति मानव की विभिन्न प्रकृतियों को नियन्त्रित एवं संतुलित रखता है। आज के त्वरितगामी युग में मनुष्य प्रत्येक क्रिया के शीघ्र परिणामों की अपेक्षा रखता है एवं ऐसी क्रियाओं को ही महत्त्व भी देता है। ___ मुद्रा साधना एक त्वरित परिणामी क्रिया है। Injection की भाँति तुरंत आंतरिक संरचना को प्रभावित करती है। इसकी इसी विशेषता के कारण विविध परिप्रेक्ष्यों में आज भी इसकी महत्ता एवं आवश्यकता है। सर्वांगीण व्यक्तित्त्व विकास के लिए यह राजमार्ग है। आध्यात्मिक मूल्य- आंतरिक भावों का शारीरिक या मानसिक अभिव्यक्तिकरण मुद्रा है। हम देखते हैं दृश्यमान जगत स्थूल है हम प्रतिक्षण इस जगत से जुड़े रहते हैं और तथाविध क्रियाओं के अनुरूप अनुभव करते रहते हैं। भाव जगत सूक्ष्म है, अदृश्य है, अगोचर है किन्तु उसकी पहचान मुद्रायोग के बल पर नि:सन्देह की जा सकती है। जैसे अंतर्विचार सूक्ष्म होते हैं, आत्म भाव सूक्ष्म होते हैं, मनोभाव सूक्ष्म होते हैं पर मुद्रा के द्वारा वे सहज रूप से प्रकट हो जाते हैं। तब उन्हें भलीभाँति पहचाना जा सकता है। मुद्रा, भावों की अनुकृति का अमोघ साधन है। मुद्रा-इन्द्रिय से अतीन्द्रिय, मूर्त से अमूर्त्त, बाह्य से आभ्यन्तर जगत में प्रवेश करने का प्रमुख द्वार है। प्रत्येक परम्परा शास्त्रोक्त मत से यह बात स्वीकारती है कि हर आत्म सत्ता में अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख (शान्ति) और अनन्त शक्ति विद्यमान हैं किन्तु कर्मबद्ध अवस्था में ये शक्तियाँ न्यूनाधिक रूप से सुषुप्त रहती हैं जबकि कर्ममुक्त स्थिति में पूर्णत: प्रकट हो जाती है। इन शक्तियों के साक्षात्कार हेतु पूर्व ऋषियों ने अनेक उपाय निर्दिष्ट किये हैं उनमें मुद्रायोग को प्राथमिकता प्रदान की है। जहाँ तक संभव है प्राय: हर परम्परा में आवश्यक कर्म, आत्म उपासना, धार्मिक अनुष्ठान, मंत्र साधना आदि शुभ क्रियाएँ मुद्रा योग पूर्वक ही सम्पादित होती है। किन्हीं में यह प्रणाली अल्पाधिक हो सकती
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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