SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुद्रा योग के प्रकार एवं वैज्ञानिक परिशीलन ...17 मालिनी विजयोत्तर तन्त्र में मुद्रा के महत्त्व को विश्लेषित करते हुए कहा गया है कि मुद्रा शिव की शक्ति स्वरूपा है तथा इसके द्वारा संरक्षित साधक मन्त्रसिद्धि को प्राप्त करता है। तन्त्रलोक के व्याख्याकार जयरथ ने भी मुद्रा को शिव की शक्ति स्वरूपा माना है और वह किस अर्थ में अतुलशक्ति को धारण किये हुए हैं उसका चित्रण आध्यात्मिक स्तर पर किया है। वे कहते हैं जिस प्रकार मगर के मुख में बारबार गमनागमन कर रही मछली मृत्यु का ग्रास बन सकती है ठीक उसी प्रकार हम सभी महाभयंकर संसार रूपी मृत्यु के गोद में पड़े हुए हैं, किन्तु मुद्रा की साधना व्यक्ति को संसार से मुक्त कराती है एवं विषय-विकार जन्य बन्धनों को विगलित करती है इस दृष्टि से मुद्रा शिवशक्ति रूप है।' तन्त्रलोक में किंचित् पुनरावर्तन के साथ यह भी निर्दिष्ट किया गया है कि मुद्रा समस्त तरह के पांशजाल से मुक्त कराती है, देह एवं पुर्यष्टक सम्बन्धी संस्कारों को द्रवित करती है तथा मन्त्र, योग, क्रिया एवं चर्या को एक रूप में मुद्रित (गुम्फित) करती है। अभिनवगुप्त ने मालिनीविजय वार्त्तिक में मुद्रा की विशिष्टता का मूल्यांकन करते हुए कहा है कि भैरवीय रस से उद्रेचन को प्राप्त घूर्णमान कुलयोगी का जो मोदन द्रावणात्मक शरीरगामी समावेश होता है वह मुद्रा है।' विष्णु संहिताकार ने इसका मूल्य आंकते हुए बतलाया है कि मुद्रा सामान्य प्रयोग या सामान्य साधना नहीं है यदि इस योग का सम्यक रीति से अनुपालन किया जाए तो वह अतुल शक्ति संपन्न देवात्माओं को प्रसन्न कर देती है और दष्ट प्रकृति वाले राक्षसों को द्रवित (ढीला) कर देती है। तान्त्रिकों के अनुसार यह विशिष्टता सर्व मुद्राओं में है। - संक्षेप में कहें तो यौगिक मुद्राओं का महत्त्व इतना अधिक है कि यदि निष्प्रयोजन अथवा अन्य दृष्टि से मुद्राओं का प्रयोग किया जाए तो व्यर्थ हो जाता है। इतना ही नहीं, उन पर देवता कुपित हो जाते हैं और अनुष्ठित कार्य की सिद्धि का हरण कर लेते हैं। अत: मुद्रा साधना एवं मुद्रा प्रयोग गुरुगम पूर्वक एकान्त-शान्त-पवित्र वातावरण में करना चाहिए। अनेक शास्त्रों में मुद्रा को सर्वोत्तम बताते हुए यहाँ तक कहा गया है कि "नास्ति मुद्रासमं किंचित् सिद्धिदं क्षिति मण्डले" अर्थात इस पृथ्वी पर मुद्रा
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy