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________________ 16...मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में ___मुद्राओं का उपयोग द्वयर्थक माना जाता है एक तो स्वास्थ्यवर्धन की दृष्टि से और दूसरा मानसिक बल की दृष्टि से भी मुद्राएँ उस क्रिया का ज्ञान करवाती है जो कि शरीर के स्वयं कार्य करने वाले यन्त्रों और स्नायुओं से सम्बन्धित हैं। योगशास्त्र के अनुसार संपूर्ण शरीर में बहत्तर हजार नाड़ियों का जाल बिछा है। क्षुरिकोपनिषत् में कहा गया है कि "द्वासप्तति सहस्राणि प्रतिनाडीषु तैतिलम्" अर्थात समस्त सूक्ष्मनाड़ियों की संख्या बहत्तर हजार है। यही नाडियाँ शरीर के विभिन्न अवयवों का संचालन करती हैं। योगियों के अनुसार यह एक ऐसी नलिका पंक्ति है, जिसके द्वारा समूचे शरीर को शक्ति प्राप्त होती रहती है इसलिए इस नाड़ीजाल को जीवनीय शक्ति कहा जाता है और उस शक्ति का अनुभव मुद्रा साधना के योगीपुरुष ही भलीभाँति कर पाते हैं। क्योंकि इस तरह के अनुभव के लिए मुद्राभ्यास ही एक ऐसी प्रखर प्रक्रिया है जो मुनष्य को अपने विषय में, स्वयं के शरीर और उसकी शक्ति के विषय में सम्यक् ज्ञान प्राप्त करवा सकती है। ___ योगाभ्यासी पुरुषों ने मुद्रा के उच्चतम परिणामों को प्रत्यक्षत: अनुभूत किया है। उसी अनुभव के आधार पर उन्होंने सयुक्तिक कहा है कि जब तक यौगिक मुद्राओं का पूर्ण ज्ञान प्राप्त न कर लिया जाए, तब तक योग सिद्धि अशक्य है। इसके महत्त्व को उजागर करते हुए वेदशास्त्र कहते हैं कि एकदा शिवजी ने पार्वती से कहा कि हे देवि! मैंने तुम्हारे समक्ष जिन मुद्राओं की चर्चा की है उन्हें आत्मसात कर लेने पर समस्त प्रकार की सिद्धियाँ हासिल हो जाती है। यह मुद्रा ज्ञान अत्यन्त गोपनीय है इसलिए चाहे जिस व्यक्ति के लिए इस स्वरूप को उद्घाटित मत करना अर्थात जो लोग इन्हें (हठयोग को) नहीं कर सकते हैं, उनके समक्ष कह देने से निःसन्देह हानि हो सकती है क्योंकि यह इतनी सरल साधारण क्रिया नहीं है जिसे हर कोई मनुष्य कर सके। इसका अभ्यास अनुभवी, दृढ़ प्रतिज्ञ, विरक्त, संयमी, आत्मज्ञानी या आत्मजिज्ञासु पुरुष ही कर सकते हैं। नि:सन्देह हठयोग की मुद्राएँ योगियों के लिए अष्टसिद्धियों और नवनिधियों को देने वाली है। इसी के साथ प्रसन्नतावर्धक एवं देवताओं के लिए दुर्लभ हैं।
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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