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मुद्रा योग के प्रकार एवं वैज्ञानिक परिशीलन ...15 में समग्र मुद्राओं का समावेश हो सकता है।
तान्त्रिक ग्रन्थों के अनुसार मुद्रा के चार प्रकार ये हैं1. कायिकी- सभी अवस्थाओं में एकरूप रहने वाली मुद्रा। 2. करजा- अंगुली विन्यासादि के भेद से त्रिविध प्रकार की मुद्रा। 3. वाचिकी- मन्त्र तन्मयता रूप मुद्रा। 4. मानसी- ध्येय तन्मयता रूप मुद्रा।।
स्वच्छन्द तन्त्र की टीका में मुद्रा के तीन प्रकार बताये गये हैं जो उक्त नामों से मिलते-जुलते हैं
1. मानसी मुद्रा- गुरुमुख में स्थित होने वाली मुद्रा। 2. वाचिकी मुद्रा- मन्त्र से उत्पन्न होने वाली मुद्रा। 3. कायिकी मुद्रा- देह के अंगविक्षेपों पर आधारित मुद्रा।
मुद्राओं का यह विभागीकरण समग्र मुद्राओं की अपेक्षा सटीक मालूम होता है। विविध ग्रन्थों के परिप्रेक्ष्य में मुद्रा योग का वैशिष्ट्य
भारत देश की मूल्यवान सभी संस्कृतियों ने मुद्रा योग को स्थान दिया है। श्रमण एवं वैदिक दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण चर्चा प्राप्त होती है। सभी सन्त साधकों ने मुद्रा विज्ञान को आवश्यक बतलाया है। मुद्रा शुभाशुभ भावों की अभिव्यंजना का सशक्त माध्यम है।
घेरण्डसंहिता में इसके महत्त्व की चर्चा करते हुए कहा गया है कि योगीजनों ने मुद्रा साधना को प्राणायामों और योगासनों से भी अधिक महत्त्व दिया है। योगासनों से शरीर का अस्थि-समूह दृढ़ होता है जबकि गोपनीय (हठयोग सम्बन्धी) मुद्राएँ कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए और चक्र भेदन के लिए उपयोगी होती है।
घेरण्डसंहिता में मुद्राओं की महत्ता का दिग्दर्शन कराते हुए यह भी कहा गया है
इदं तु मुद्रा पटलं, कथितं चण्डकापाले ।
वल्लभं सर्वसिद्धानां, जरामरणनाशकम् ।।3/94 हे चण्डकापाल! यह मुद्रा समूह सब सिद्धों (योगियों) को प्रिय है। वृद्धावस्था और मृत्यु का नाश करने वाली है।