SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 14...मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में मुद्रा, धनुःसंधान मुद्रा, वज्र मुद्रा आदि को श्रमसाध्य मुद्राओं के अन्तर्गत माना जा सकता है। इसके सिवाय नाराच मुद्रा, परशु मुद्रा, आवाहन मुद्रा, संनिधानी मुद्रा, नमस्कार मुद्रा, अंजलि मुद्रा इत्यादि की परिगणना सहज मुद्राओं में की जा सकती है। खास तौर पर इन मुद्राओं का उल्लेख किसी तरह की शारीरिक अथवा यौगिक उपलब्धियों को लक्षित करके नहीं किया गया है प्रत्युत प्रतिष्ठा, पूजोपासना, जाप, अभिमन्त्रण, देवआह्वान, दुष्ट शक्तियों का निवारण इस तरह के धार्मिक अनुष्ठानों के सन्दर्भ में मिलता है। पूर्वनिर्दिष्ट ग्रन्थों का अध्ययन करने से यह तथ्य भी स्पष्ट हो जाता है कि इनमें वर्णित मुद्राएँ प्रसंग विशेष पर ही दिखायी जाती है किसी तरह के उपचार हेतु इन मुद्राओं का सामान्यत: प्रयोग नहीं होता है। यद्यपि प्रयोग करते समय अपनी गुणवत्ता के अनुसार शरीर, मन एवं चेतना को स्वस्थ रखने में भी फायदा करती है। ध्यातव्य है कि इन मुद्राओं का विशिष्ट प्रयोग आचार्य, पदस्थ मुनि अथवा निष्णात विधिकारक के द्वारा किया जाता है। __इस तरह जैन ग्रन्थों में निर्दिष्ट मुद्राएँ श्रम अपेक्षित एवं श्रम निरपेक्ष दोनों स्तर की हैं। अनभ्यास साध्य- अर्वाचीन प्रतियों में उपलब्ध अधिकांश मुद्राएँ सरल, सहज एवं प्रायोगिक है। ये मुद्राएँ बिना किसी परम्परा भेद के जन-सामान्य में भी अत्यधिक प्रचलित हैं। वर्तमान युग में इस तरह की मुद्राओं का प्रयोग दिनप्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इन मुद्राओं को चिकित्सा मुद्रा की कोटि में परिगणित कर लिया गया है। इनके प्रयोग शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक विकास की दृष्टि से अत्यन्त फलदायी सिद्ध हो रहे हैं। इन मुद्राओं का अभ्यास मुख्यतया उपचार के रूप में किया जाता है। इनमें ज्ञान मुद्रा, सूर्य मुद्रा, वरूण मुद्रा, आकाश मुद्रा, शंख मुद्रा, प्राण मुद्रा, अपान मुद्रादि विशिष्ट कोटि की मुद्राएँ हैं। तन्त्र सम्बन्धी मुद्राएँ सामान्यतया मुद्रा विज्ञान तन्त्र साधना का ही एक प्रकार है, इसलिए तन्त्र प्रधान ग्रन्थों में अनेक तरह की मुद्राएँ उल्लिखित हैं। यदि उन मुद्राओं का स्वरूप अथवा प्रयोजन की दृष्टि से वर्गीकरण किया जाये तो निम्न चार प्रकारों
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy