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________________ मुद्रा का स्वरूप एवं उसकी अवधारणाएँ ...7 वास्तविक मुद्रा है।22 इस विशिष्ट स्वरूप का समर्थन करते हुए विवेककार ने उद्धरण प्रस्तुत किया है वह भी मुद्रा की आध्यात्मिक स्थिति को ही दर्शाता है। वे कहते हैंनादो मन्त्रः स्थितिर्मुद्रा अर्थात मन्त्रनाद की स्थिति मुद्रा है। कुलार्णवतन्त्र के अनुसार मुद्रा अवश्यमेव प्रदर्शित करनी चाहिए, क्योंकि वह देवताओं को मुदित करती है और मन को द्रवित (भावपूर्ण) करती है।24 ___निर्वाणतन्त्र में मुद्रा को एक स्वतन्त्र प्रक्रिया के रूप में माना गया है। तदनुसार गेहूँ, चना, चावल आदि भुने हुए चिवडे का नाम मुद्रा है।25 इसी प्रकार बौद्ध परम्परा मान्य प्रज्ञोपायविनिश्चयसिद्धि में मुद्रा को पाँच मकारों में चौथा मकार कहा गया है। इसका अर्थ विभिन्न प्रकार के घृत संयुक्त या भुना हुआ अन्न है। मुद्रा का एक अर्थ नारी भी किया है जिससे तान्त्रिक योगी अपने को सम्बन्धित करता है।26 साधनमाला नामक बौद्ध ग्रन्थ में अलंकारों को मुद्रा कहा गया है। इस तरह हम देखते हैं कि यौगिक साधनाओं में मुद्रायोग भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विविध पहलूओं से महत्त्वपूर्ण है। सन्दर्भ-सूची 1. (क) संस्कृत हिन्दी कोश, पृ. 155 (ख) संस्कृत हिन्दी कोश, पृ. 670 2. निर्वाणकलिका, पृ. 67 3. शब्द कल्पद्रुम, पृ. 743-47 4. अभिधानचिन्तामणि, 4/195 5. वैयाकरण सिद्धान्त कौमुदी, भट्टोजी दीक्षित, पृ. 1083-84 6. व्यवहारैरयं भेदस्तस्मादेकस्य नान्यथा। मुद मोदे तु रादाने, जीवात्म परमात्मनोः ॥ उभयोश्चैक्संवित्ति, मुद्रेति परिकीर्तिता । मोदन्ते देवसंघाश्च, द्रवन्ते सुरराशयः । मुद्रेति कथिता साक्षात्, सर्वभद्रार्थदायिनी । अस्मिन्मार्गेऽदीक्षिताये, सदासंसाररागिणः ।। सिद्धसिद्धान्तपद्धतिः, उद्धृत-जयेन्द्र योग प्रयोग, पृ. 130
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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