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________________ 4...मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में निरोध सम्भव होता हो, पराङ्मुख को अन्तर्मुख किया जाता हो, स्थूल शरीर का उसके सूक्ष्म शरीर, कारण शरीर और पर-शरीर से तादात्म्य स्थापित होता हो, बिन्दु का सिन्धु में विलय होता हो और उन्मनी अवस्था की प्राप्ति होती हो। इस सम्बन्ध में श्रुति का कथन है भिद्यते हृदय ग्रन्थिः, छिद्यन्ते सर्वसंशयाः । क्षीयन्ते चास्य कर्माणि, तस्मिन्दृष्टेपरावरे ।। यही जीव की मुक्तावस्था है, यही द्रावण क्रिया है, यही एकरस होना है, यही शक्ति का उन्मेष है। संक्षेप में योग की जिन क्रियाओं के द्वारा व्यक्ति स्वयं परमात्म रूप होता है वह अन्त: मुद्रा है। दूसरी व्युत्पत्ति के अनुसार मुद्रा हि परतत्त्व प्रतिबिम्ब भूता अन्तःसंविद्रविणमुद्रणात् मुदं राती पाशमोचनभेद द्रावण कारिणी, तत्संनिवेशरूपतया परस्फार मनुकुर्वती । शारदातिलक के अनुसार 'मुदं राति इति मुद्रा' जो मुद् या हर्ष देती है उसे मुद्रा कहते हैं।1० शिवसूत्रवार्त्तिक में भी मुद्रा शब्द की व्युत्पत्ति 'मुदं राति इति मुद्रा' कही गई है।11 ईश्वरसंहिता के अनुसार मुद्रा मुद् या हर्ष देती है तथा दोषों को भी द्रवित करती है।12 ईश्वरसंहिता के मतानुसार मुद्राओं के दो रूप हैंपहला मानसिक एवं दूसरा प्रायोगिक। इन दोनों ही रूपों में मद्रा प्रदर्शन के पहले मन्त्र के स्मरण करने का विधान है।13 तदनुसार मुद्रा प्रदर्शन का मुख्य उद्देश्य हिंसक वृत्तियों का निवारण एवं देवताओं का प्रसादन है।14। नारदीयसंहिता में बताया गया है कि भगवद् आराधना करते वक्त मानसिक या वाचिक रूप में मन्त्रों का प्रयोग होता है उसमें मुद्रा उन्हीं का कायिक प्रतीक होती है।15 प्रस्तुत संहिता में यह भी कहा गया है कि देवताओं और मन्त्रों की अधिकता के कारण मुद्राएँ भी बहुत हो सकती है। इसलिए मुद्राओं की निश्चित संख्या नहीं कही जा सकती अत: सभी के स्वरूपों को नहीं कहा जा सकता।16 योगिनीहृदय में मुद्रा को मुद् (मोद, प्रसन्नता) से एवं द्रावय (द्रु का हेतुक) से ही निष्पन्न कहा है अर्थात मुद्रा विश्व की मुख्य क्रिया शक्ति है।17 स्पष्ट है कि संसार का मोदन और द्रावण करने वाली क्रिया शक्ति का नाम ही मुद्रा है। इसकी दीपिका टीका में कहा गया है कि अनुकूल क्रिया का नाम मोदन और उसका
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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