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मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में ...lili मुद्राओं का सचित्र वर्णन किया गया है। __तीसरे अध्याय में सप्त रत्न, चौथे अध्याय में अष्ट मंगल, पाँचवें अध्याय में अठारह कर्त्तव्य, छठे अध्याय में बारह द्रव्य हाथ मिलन, सातवें अध्याय में म-म-मडोस ऐसे विविध प्रसंगों में उपयोगी मुद्राओं का सहेतुक चित्रण किया गया है। __आठवाँ अध्याय जापानी बौद्ध मुद्राओं एवं नौवाँ अध्याय भारतीय बौद्ध मुद्राओं का प्रतिपादन करता है।
दशवें अध्याय में गर्भधातु- वज्रधातु मण्डल संबंधी धार्मिक मुद्राओं का निरूपण किया गया है। ___ ग्यारहवाँ अध्याय उपसंहार के रूप में प्रस्तुत है। इस कृति के परिशिष्ट में भगवान बुद्ध के प्राचीन मुद्रा चित्र भी दिए गए हैं।
• मुद्रा विधि के छठवें खण्ड में यौगिक मुद्राओं की विवेचना की गई है। यह शोध खण्ड पाँच अध्यायों में गुम्फित है।
प्रथम अध्याय में चक्र एवं केन्द्र आदि के संतुलित-असंतुलित स्थिति से होने वाले परिणामों की चर्चा की गई है।
द्वितीय अध्याय में सामान्य अभ्यास द्वारा जिन मुद्राओं को सिद्ध किया जा सकता है उनका सोद्देश्य वर्णन किया गया है।
तृतीय अध्याय में विशिष्ट प्रकार के अभ्यास द्वारा जिन मुद्राओं पर अधिकार पाया जा सकता है, ऐसी हठयोग सम्बन्धी मुद्राओं का विवेचन किया गया है। __यद्यपि जैन एवं इतर परम्पराओं में भी यौगिक मुद्राएँ हैं परन्तु वहाँ उनका अस्तित्व स्वतंत्र नहीं है। वे अन्य प्रासंगिक मुद्राओं के साथ सम्मिलित है। इस खण्ड में जिन यौगिक मुद्राओं का उल्लेख है वे मुख्यतया हठयोग सम्बन्धी और दुःसाध्य हैं।
चौथे अध्याय में चिकित्सा उपयोगी यौगिक मुद्राओं का चार्ट दिया गया है, जो शारीरिक एवं आध्यात्मिक दोनों दृष्टियों से अनुसरणीय है।
पांचवाँ अध्याय परिशिष्ट के रूप में है जिसमें सर्वप्रथम सहायक ग्रन्थ सूची दी गई है। उसके पश्चात् मुद्रा प्रभावित चक्र आदि के यन्त्र एवं चित्र दिये गये हैं और विशिष्ट शब्दों का अर्थ विन्यास किया गया है।