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________________ li...मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में तृतीय अध्याय में 15वीं शती के दिग्गज आचार्य श्री वर्धमानसूरि द्वारा उल्लेखित मुद्राओं का रहस्यपूर्ण विवेचन किया गया है। चतुर्थ अध्याय में प्राचीन-अर्वाचीन प्रतियों एवं ग्रन्थों में उपलब्ध शताधिक मुद्राओं का प्रभावी वर्णन किया गया है। पांचवाँ अध्याय उपसंहार के रूप में निरूपित है। इसमें मुख्य रूप से रोगोपचार उपयोगी जैन मुद्राओं की सारणी प्रस्तुत की गई है। • मुद्रा योग का यह चतुर्थ खण्ड निम्न सात अध्यायों में वर्गीकृत है और इसमें हिन्दु परम्परागत मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में बताई गई है। प्रथम अध्याय में मुद्रा प्रयोग से सूक्ष्म शरीर के शक्ति स्थानों पर होने वाले प्रभावों की चर्चा की गई है। द्वितीय अध्याय में हिन्दू परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का सटीक वर्णन किया गया है। तृतीय अध्याय में हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रन्थों में उल्लिखित मुद्राओं का सचित्र विवेचन किया गया है। चतुर्थ अध्याय में गायत्री जाप साधना में उपयोगी मुद्राओं का प्रभावपूर्ण निरूपण किया गया है। पंचम अध्याय में हिन्दू एवं बौद्ध दोनों परम्परा में समान रूप से मान्य मुद्राओं पर विचार किया गया है। ___षष्ठम अध्याय में देवार्चन, नित्य उपासना, होम आदि के समय प्रयोग की जाने वाली मुद्राओं का प्रतिपादन है। सप्तम अध्याय में रोगोपचार में सहयोगी हिन्दू मुद्राओं का चार्ट दिया गया है जिसे उपसंहार कहा जा सकता है। • मुद्रा योग के पाँचवें खण्ड के अन्तर्गत बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक अनुशीलन किया गया है। यह पांचवाँ खण्ड एकादश अध्यायों में गूंथा गया है पहला अध्याय भौतिक एवं आध्यात्मिक जगत पर पड़ने वाले मुद्रा के विविध प्रभावों को उपदर्शित करता है। दूसरे अध्याय में भगवान बुद्ध की मुख्य पाँच एवं सामान्य चालीस
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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