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________________ मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में ...li से मुद्रा का उद्भव कब, किन स्थितियों में हुआ? विभिन्न धर्म परम्पराओं में इसका अस्तित्व किस रूप में है? वर्तमान में इसका उपयोग उपचार के क्षेत्र में सर्वाधिक क्यों? ऐसे कई बिन्दुओं पर विचार किया गया है। चतुर्थ अध्याय में सभी परम्पराओं में प्राप्त मुद्राओं का तुलनात्मक पक्ष प्रस्तुत किया गया है। __पांचवाँ अध्याय उपसंहार के रूप में प्रतिपादित है। • मुद्रा योग का द्वितीय खण्ड नाट्य मुद्राओं से सम्बन्धित है। इसमें भरत के नाट्यशास्त्र आदि ग्रन्थों में उपलब्ध मुद्राओं का वैज्ञानिक अनुशीलन करते हुए उसे सात अध्यायों में गुम्फित किया है। प्रथम अध्याय में मुद्रा के भिन्न-भिन्न प्रभावों का प्रतिपादन किया गया है। द्वितीय अध्याय भरत के नाट्य शास्त्र में विवेचित मुद्राओं का निरूपण करता है। तृतीय अध्याय में नाट्यशास्त्र से उत्तरवर्ती ग्रन्थों में उपलब्ध नाट्य मुद्राओं की सूची मात्र दी गई है, क्योंकि परवर्ती ग्रन्थकारों ने प्रायः भरत के नाट्य शास्त्र का ही अनुसरण किया है। चतुर्थ अध्याय अभिनयदर्पण में वर्णित विशिष्ट मुद्राओं से सन्दर्भित है। पाँचवें अध्याय में भारतीय नाट्य कला में प्रचलित सामान्य मुद्राओं का विश्लेषण किया गया है। छठवें अध्याय में शिल्पकला एवं मूर्तिकला में प्राप्त हस्त मुद्राओं को सचित्र बताया गया है। ____ सातवाँ अध्याय उपसंहार के रूप में गुम्फित है। जिसमें रोगोपचार उपयोगी नाट्य मुद्राओं का चार्ट दिया गया है। __ • मुद्रा योग के तृतीय खण्ड में जैन मुद्राओं का गुम्फन किया गया है। इसमें जैन परम्परा की महत्त्वपूर्ण मुद्राओं का समीक्षात्मक अध्ययन करते हए उसे पाँच अध्यायों में प्रस्तुत किया है। प्रथम अध्याय में सामान्य तौर पर मुद्राओं के विभिन्न प्रभाव बतलाए गए हैं। द्वितीय अध्याय में 14वीं शती के महान् आचार्य जिनप्रभसूरि रचित विधिमार्गप्रपा की लगभग 75 मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप बतलाया गया है।
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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