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________________ __ जैन एवं इतर परम्परा में उपलब्ध मुद्राओं की सूची ...71 अनुसार तो मुद्राएँ अनगिनत हैं। देवीपुराण (11/16/68-102), ब्रह्मपुराण (61-55), नारदीयपुराण (2/57/55-56) आदि अनेक हिन्दू पुराणों और तांत्रिक ग्रन्थों में मुद्राओं के उल्लेख मिलते हैं। बौद्ध परम्परा में भी भिन्न-भिन्न मुद्राओं के उल्लेख प्राप्त होते हैं। ___ यदि त्रिविध परम्पराओं की पारस्परिक तुलना करें तो जैन एवं बौद्ध सम्बन्धी मुद्रा के नामों और विधियों में लगभग असमानता है। कुछ मुद्राओं में समरूपता भी दिखती है जैसे- अभय मुद्रा, वन्दन मुद्रा, कायोत्सर्ग मुद्रा आदि। इन मुद्राओं के नाम एवं उनकी प्रयोगविधि प्राय: समान है। जैन एवं हिन्दू सम्बन्धी मुद्राओं में परस्पर साम्य-वैषम्य दोनों हैं। इस तरह हिन्दू एवं बौद्ध सम्बन्धी मुद्राओं में परस्पर समानता भी है और असमानता भी है। कुछ मुद्राएँ नाम एवं प्रयोग की दृष्टि से बिल्कुल समान हैं। अग्रिम खण्डों में उन मुद्राओं की चर्चा स्वतन्त्र अध्याय के रूप में भी की जाएगी। सामान्यतया बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं के नाम जन साधारण में प्रायः अप्रसिद्ध हैं। प्रत्येक मुद्रा का प्रयोग अपनी परम्परा के अनुसार भिन्न-भिन्न रूप में किया जाता है तथा उनके उद्देश्य भी पृथक्-पृथक् हैं। ___नाट्य मुद्राएँ, हठयोग आदि मुद्राएँ एवं वर्तमान प्रचलित उपचार सम्बन्धी मुद्राएँ किसी भी धर्म परम्परा से जुड़ी हुई नहीं है क्योंकि नाट्य मुद्राओं का उद्भव मुख्यत: भावों की अभिव्यक्ति एवं नृत्य-नाटकों के अभिनय को दर्शाने के रूप में हुआ, हठयोगादि मुद्राओं का प्रादुर्भाव अध्यात्म साधना को विकासोन्मुख करने के ध्येय से हुआ तथा कई मुद्राएँ उपचार की दृष्टि से प्रचलन में आईं। इसलिए इन मुद्राओं का प्रयोग हर कोई तद्भूत प्रयोजनों से कर सकता है। इनमें परम्परा का व्यामोह बाधक नहीं बनता है। संदर्भ सूची 1. (क) नाट्य शास्त्र, 9वाँ अध्याय (ख) द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 26-44 2. (क) अभिनय दर्पण, श्लोक 89-201 (ख) द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 28, 29, 32, 34, 38, 41 3. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 31 से 50
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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