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जैन एवं इतर परम्परा में उपलब्ध मुद्राओं की सूची ...49 5. अवतार सम्बन्धी मुद्राएँ
1. बलरामावतार मुद्रा 2. कल्कावतार मुद्रा 3. कृष्णावतार मुद्रा 4. कूर्मावतार मुद्रा 5. मत्स्यावतार मुद्रा 6. नरसिंहावतार मुद्रा 7. परशुरामावतार मुद्रा 8. रघुरामावतार मुद्रा 9. वामनावतार मुद्रा।' तुलना
सर्वप्रथम आदिम युग में नाट्य अभिनय को दर्शाने हेतु मुद्राओं का उद्भव हुआ। उस काल में जो मुद्राएँ प्रचलन में आई, वे लगभग भरत मुनि के नाट्यशास्त्र में गुम्फित हैं। उसके पश्चात इसी ग्रन्थ का अनुकरण करते हुए विष्णुधर्मोत्तर पुराण, समरांगण सूत्रधार, नृत्याध्याय, संगीतरत्नाकर आदि में प्रायः उन्हीं मुद्राओं का उल्लेख किया गया है। इसी क्रम में अभिनय दर्पण नामक ग्रन्थ में भरत के नाट्य शास्त्र के अतिरिक्त कुछ अन्य मुद्राओं का भी सविधि वर्णन है। तदनन्तर विदेशी विद्वानों ने भारतीय नाट्य में उपयोगी अनेक मुद्राओं का प्रतिपादन किया है।
इस प्रकार नाट्यकला की परम्परा में 200 से अधिक मुद्राएँ प्राप्त होती है। इन मुद्राओं में भरत नाट्य की कुछ मुद्राओं के भिन्न स्वरूप भी प्राप्त होते हैं। ___यदि नाट्य मुद्राओं की तुलना अन्य परम्परा की मुद्राओं के साथ की जाए तो उनमें प्राय: असमानता मालूम होती है। नाट्य ग्रन्थों में उपलब्ध किसी भी मुद्रा का नाम प्रचलित परम्पराओं में प्राप्त नहीं होता है तथा अन्य परम्परा की मुद्राओं का भी इसमें नामोल्लेख नहीं है। इससे यह सुस्पष्ट हो जाता है कि नाट्य मुद्राओं का अस्तित्त्व स्वतन्त्र है।
जैन ग्रन्थों में वर्णित मुद्राओं की क्रमिक सूची 1. पादलिप्ताचार्य विरचित निर्वाणकलिका में उपदिष्ट मुद्राएँ
(i) स्थान एवं शरीरादि की शुद्धि सम्बन्धी मुद्राएँ- 1. नाराच मुद्रा 2. कुम्भ मुद्रा। ___(ii) हृदय आदि अंगों पर न्यास करने सम्बन्धी मुद्राएँ- 3. हृदय मुद्रा 4. शिरो मुद्रा 5. शिखा मुद्रा 6. कवच मुद्रा 7. क्षुर मुद्रा 8. अस्त्र मुद्रा।
(iii) आह्वान सम्बन्धी मुद्राएँ- 9. महा मुद्रा 10. धेनु मुद्रा 11. आवाहनी मुद्रा 12. स्थापनी मुद्रा 13. संनिधानी मुद्रा 14. निष्ठुर मुद्रा।