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________________ मुद्रा योग का ऐतिहासिक अनुसन्धान ...43 शती) में 77 मुद्राओं का विवेचन प्राप्त होता है। इस ग्रन्थ में मुद्राविधि नाम का एक स्वतन्त्र प्रकरण ही है। जैन परम्परा के प्राचीनतम अथवा अर्वाचीन ग्रन्थों की तुलना में सर्वाधिक मुद्राएँ विधि प्रपा में ही परिलक्षित होती है। तत्पश्चात आचारदिनकर (15वीं शती) में स्वरूप वर्णन के साथ 42 मुद्राएँ उपलब्ध होती है। प्रत्येक मुद्रा का संक्षेप में प्रयोजन भी बताया गया है। तदनन्तर अर्वाचीन प्रतियों, कल्याणकलिका, प्रतिष्ठाकल्प आदि में वर्तमान प्रचलित मुद्राओं का विवेचन मिलता है तथा इन कृतियों में निर्दिष्ट मुद्राएँ प्राय: पूर्ववर्ती ग्रन्थों से ही उद्धृत की गई मालूम होती है। ____ विगत कुछ वर्षों से हस्त मुद्रा से सन्दर्भित पुस्तकें भी देखने-पढ़ने में आई है। उनमें उल्लिखित अनेक मुद्राओं का प्रामाणिक आधार प्राप्त नहीं हो पाया है। संभवतया यह वर्तमान युग के विद्वत् मनीषियों की नई खोज हो सकती है। यहाँ ध्यातव्य है कि 15वीं शती तक के ग्रन्थों में निर्दिष्ट मुद्राएँ कर्मकाण्ड एवं उपासना प्रधान हैं, जबकि आधुनिक पुस्तकों में वर्णित मुद्राएँ विशेष तौर पर स्वास्थ्यवर्धक एवं मनस परिष्कार से सम्बन्धित ज्ञात होती है। यद्यपि इन मुद्राओं के माध्यम से बौद्धिक क्षमताएँ, धार्मिक एवं आध्यात्मिक भावनाएँ भी विकसित होती है किन्तु मुख्य ध्येय रोगों से छुटकारा पाना ही देखा जाता है। जहाँ तक दिगम्बर परम्परा का सवाल है वहाँ पण्डित आशाधर कृत अनगारधर्मामृत में चतुर्विध मुद्राओं का उल्लेख प्राप्त होता है। ____ यदि बौद्ध परम्परा के सन्दर्भ में कहा जाए तो यह निर्विवाद है कि इस धर्म संघ में हजारों मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है। इनके मुख्य रूप से सप्त रत्न, अष्ट मंगल, अठारह कर्त्तव्य, बारह द्रव्य हाथ मिलन, म-म मडोस् आदि कई मुद्राएँ उपलब्ध होती है। यहाँ भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित 40 मुद्राएँ भी कही गई है तथा कर्मकाण्ड में उपयोगी गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल की शताधिक मुद्राओं का उल्लेख है। कुछ मुद्राएँ भारत, थायलैण्ड, जापान, ऐसे भिन्न-भिन्न देशों में ही प्रचलित है तो कुछ हिन्दू एवं बौद्ध दोनों परम्पराओं में समान रूप से स्वीकारी गई है। भगवान बुद्ध की 40 मुद्राओं का वर्णन संभवतया पारम्परिक हिन्दू अथवा बौद्ध महायान ग्रन्थों में प्राप्त नहीं होता है, लेकिन आधुनिक शोधकर्ताओं के अनुसार इन मुद्राओं की स्थापना राजा राम III के समय हुई। राम III ने भगवान
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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