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________________ 42... मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में विभिन्न मुद्राओं में अवस्थित योगी साधकों के अनेक चित्र, स्थापत्य आदि आज भी उपलब्ध हैं। इस तरह दर्शन, विज्ञान, साधना, उपासनादि विविध पद्धतियों की अपेक्षा भी मुद्राओं का महत्त्व पूर्वकाल से रहा है। जहाँ तक जैन परम्परा का प्रश्न है वहाँ श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार कुछ आगमों में नाट्य आदि के वर्णन अवश्य प्राप्त होते हैं जो मुद्रा के प्रारम्भिक स्वरूप के द्योतक हो सकते हैं। भगवतीसूत्र, ज्ञाताधर्मकथा आदि कुछ शास्त्रों में बद्धांजलि पूर्वक नमस्कार मुद्रा, वन्दन मुद्रा, प्रणिपात मुद्रा के नामोल्लेख स्पष्टत: उपलब्ध होते हैं। आचारांगसूत्र में भगवान महावीर की कठोर साधना का वर्णन करते हुए कहा गया है कि प्रभु अपनी दृष्टि को नासाग्र पर स्थिर कर, दोनों हाथों को सीधा करके घंटों तक खड़े-खड़े आत्मधारा में विहरण करते रहते थे। इस वर्णन में नासाग्रदृष्टि मुद्रा एवं जिन मुद्रा के स्पष्ट संकेत हैं। भगवान महावीर के सम्बन्ध में उत्कटासन मुद्रा का उल्लेख भी प्राप्त होता है । यदि आगमिक टीका साहित्य का अवलोकन करते हैं तो आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, चूर्णि, टीका आदि में षड़ावश्यक ( सामायिक, प्रतिक्रमण, वन्दन आदि) से सम्बन्धित वन्दन मुद्रा, योग मुद्रा, मुक्ताशुक्ति मुद्रा, जिन मुद्रा, वीरासन मुद्रा आदि का वर्णन कहीं नाम निर्देश मात्र तो कहीं स्वरूप के साथ प्राप्त होता है। यदि आगमेतर साहित्य की अपेक्षा विचार किया जाए तो उपलब्ध ग्रन्थों के अनुसार सर्वप्रथम निर्वाणकलिका (वि.सं. 11वीं शती) में 63 मुद्राओं का स्वरूप उपलब्ध होता है। इसके अनन्तर नेमिचन्द्रसूरि कृत प्रवचनसारोद्धार (12-13वीं शती) में प्रभु दर्शन से सम्बन्धित तीन मुद्राओं का वर्णन देखा जाता है। तदनन्तर तिलकाचार्यसामाचारी ( 13वीं शती) में 19 मुद्राओं का नामोल्लेख मिलता है जिनका निर्देश वासचूर्ण एवं अक्षत अभिमन्त्रण के सन्दर्भ में किया गया है। इसी क्रम में सुबोधासामाचारी (12वीं शती) के अन्तर्गत भिन्नभिन्न प्रयोजनों की अपेक्षा 16 मुद्राएँ कही गई हैं। इस सामाचारी में भी मुद्राओं का नामोल्लेख ही मात्र किया गया है। तदनन्तर खरतरगच्छ सामाचारी का प्रतिपादक ग्रन्थ विधिमार्गप्रपा ( 14वीं
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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