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________________ मुद्रा योग का ऐतिहासिक अनुसन्धान ...41 नाम साम्य की अपेक्षा देखा जाए तो ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र का नाम भी भरत था। संभवत: भरत का नाट्यशास्त्र उस भरत से सम्बन्धित हो। इसे यथार्थ मानने का एक कारण यह भी है कि वैदिक ग्रन्थों में बहुत सी जगह शिव के रूप में आदिनाथ, ऋषभदेव, आदिपुरुष जैसे नामों का उल्लेख हुआ है। दूसरा जैन संस्कृति और वैदिक संस्कृति समकालीन होने से भी पूर्वोक्त संभावना को यथार्थ माना जा सकता है। ___ तीसरा हेतु यह है कि भरत और सुन्दरी दोनों भाई-बहिन युगल रूप में उत्पन्न हुए थे, ऋषभदेव ने उस युग में सर्वप्रथम पुरुषों को बहत्तर एवं स्त्रियों को चौसठ कलाएं सिखायी। उसमें नृत्य-नाट्यादि कलाओं का भी समावेश है। भरत एवं सुन्दरी ज्येष्ठ पुत्र-पुत्री होने से यह शक्य है कि नाट्यादि कलाओं का सर्वप्रथम ज्ञान उन्हें दिया हो और उसी के फलस्वरूप भरत ने नाट्यशास्त्र का निर्माण किया हो। कुछ भी हो इतना निश्चित है कि आदिम युग में नाट्यादि के रूप में मुद्रा प्रयोग किया जाता था। __जहाँ तक सैद्धान्तिक दर्शनों का सवाल है वहाँ प्राय:कर सभी दर्शनों में मुद्राओं के महत्त्व को अपने-अपने तरीके से स्वीकार किया गया है। धर्म दर्शन के क्षेत्र में मुद्राओं को ज्ञान अथवा योग की निश्चित प्रणालियों की वाचिकाओं के रूप में मान्य किया है। हिन्दू-बौद्धादि दर्शनों में अपने-अपने सिद्धान्तों के अनुसार मुद्राओं का उपयोग किया जाता है। उत्तर शैव एवं दक्षिण शैव परम्परा में भी मुद्रा का अपना स्वरूप एवं महत्त्व स्वीकार किया गया है। मनोविज्ञान की दृष्टि से मुद्रा प्रयोग का व्यापक स्वरूप परिलक्षित होता है। वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर कहा जाये तो जितने तरह की मन:स्थितियाँ बाह्य स्वरूप धारण करती हैं उतने प्रकार से शरीर की एवं उसके अवयवों की स्थितियाँ भिन्न-भिन्न हो जाती हैं। क्रोध के क्षणों में शरीर की जो आकृति होती है वह चिन्तन या प्रेम की स्थिति में नहीं होती। अध्ययन के पलों में जो देहाकृति होती है वह भाषण या लेखन के समय नहीं होती। एक ही भाव में धीर, अधीर, कोमल या कठोर व्यक्ति की मुद्रा में भी अन्तर होता है। अत: भावना के अनुसार देह की आकृति (चेष्टा) का परिवर्तित होना अत्यन्त स्वाभाविक है। दैहिक स्तर से ऊपर उठकर की जाने वाली मुद्रा साधना का और भी अधिक महत्त्व है।
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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