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प्रतिष्ठा के मुख्य अधिकारियों का शास्त्रीय स्वरूप ...15 जिनालय निर्माण का मुख्य अधिकारी कौन?
जिनभवन का निर्माण योग्य व्यक्ति के द्वारा करवाया जाना चाहिए। अयोग्य व्यक्ति से करवाने पर अशुभ कर्मों का बन्ध होता है, क्योंकि अयोग्य व्यक्ति जिनभवन का निर्माण करवायेगा तो जिनाज्ञा का भंग हो सकता है। जबकि धर्म आज्ञा पालन में निहित है इसलिए आज्ञा भंग से दोष लगता है। __जिनशासन में आज्ञा का अत्यन्त महत्त्व है। पूर्वाचार्यों ने इस सम्बन्ध में कहा है कि आप्त वचन का पालन करने से शुभ कर्म का बन्ध होता है और उसकी विराधना करने से अशुभ कर्म का बन्ध होता है यही धर्म का रहस्य है। इसलिए जिनभवन निर्माण के लिए योग्य व्यक्ति होना चाहिए।
पंचाशक प्रकरण के अनुसार जिनभवन निर्माण करवाने का अधिकारी वह गृहस्थ है जो शुभ भाव वाला स्वधर्मी हो, समृद्ध हो, कुलीन हो, उदार हो, धैर्यवान हो, बुद्धिमान हो, गुरु (माता, पिता और धर्माचार्य आदि) की स्तुति करने में तत्पर हो, शुश्रुषा आदि आठ गुणों से युक्त हो, जिनभवन की निर्माण विधि का ज्ञाता हो और आगमों को अधिक महत्त्व देने वाला हो।'
षोडशक प्रकरण के अनुसार जो न्यायोपार्जित धन का मालिक हो, बुद्धिमान हो, भविष्य के हित का ज्ञाता हो, सुंदर विचार प्रकृष्टत: बढ़े हुए हों, सदाचारी हो तथा गुरु आदि संघमान्य एवं राजमान्य व्यक्तियों से बहुसंमत हो, वह जिनालय निर्माण का अधिकारी होता है।'
सम्यक्त्व प्रकरण के मतानुसार कौटुम्बिक सुख से युक्त, धनिक, कुलोत्पन्न, अक्षुद्र, धृतिवान , मतिमान और धर्मानुरागी इन गुणों से सम्पन्न गृहस्थ जिनभवन बनवाने के योग्य होता है।
कथारत्नकोश के कथनानुसार निर्मल कुल में उत्पन्न होने वाला, वैभव का उपभोग करने वाला, गुरु भक्त, शुभ चित्त में प्रवृत्त, अत्यन्त धर्म प्रतिबद्ध, संस्कारी परिवार से युक्त, शुश्रूषा आदि प्रमुख गुणों का संग्रह करने वाला, विशुद्ध मतिवाला और आज्ञा प्रधान चित्त वाला जिनालय निर्माण के लिए योग्य है। __उपाध्याय यशोविजयजी ने पूर्वाचार्यों का अनुसरण करते हुए जिनभवन निर्माता के लिए उक्त गुणों का होना अनिवार्य माना है।10
इन गुणों से सम्पन्न श्रावक जिनालय निर्माण का उत्तम अधिकारी माना जा