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सम्यक्त्वी देवी-देवताओं का शास्त्रीय स्वरूप ...637 दिक्पाल की स्थापना एवं पूजा कब और क्यों?
जैन परम्परा में दीक्षा, प्रतिष्ठा, अठारह अभिषेक, नन्द्यावर्त पूजन, बिम्ब प्रवेश, बिम्ब स्थापना आदि मांगलिक अवसरों पर नवग्रहों एवं दस दिक्पालों का आह्वान पूर्वक सम्मान और पूजा पूर्वक उनकी स्थापना की जाती है। __स्पष्ट है कि जैन प्रणाली में किसी भी तरह का मंगल विधान हो, उसकी निर्विघ्न सम्पन्नता हेतु नवग्रह एवं दस दिशा के देवताओं का स्मरण और पूजन किया जाता है। यह प्रक्रिया करने के पश्चात मन में यह विश्वास पैदा हो जाता है कि अब अशुभ ग्रह या दिशा सम्बन्धी कोई उपद्रव नहीं हो सकता।
वस्तुत: दसों दिशाओं से होने वाले उपद्रवों के निवारणार्थ दिक्पालों की स्थापना की जाती है। इससे अन्य विघ्नों का भी उपशमन होता है। दिक्पाल स्थापना कहाँ और किसके द्वारा? ।
दीक्षा आदि की नन्दि विधियों में दिक्पालों के नामोच्चारण पूर्वक दसों दिशाओं की कल्पना करते हुए त्रिगड़े के चारों ओर उनकी स्थापना की जाती है अथवा एक पट्टे पर अक्षत की 10 ढिगली करके उनकी स्थापना करते हैं और उसी पट्ट पर उनके वर्ण आदि के अनुसार पुष्प-फल-नैवेद्यादि चढ़ाकर पूजा कर लेते हैं। वही आजकल काष्ठ के पट्ट पर नवग्रह और दशदिक्पाल के चित्र उत्कीर्ण किये हुए तैयार मिलते हैं उन्हीं पर आह्वान एवं पूजा आदि सामग्री चढ़ाते हैं।
इसे ही नवग्रह और दस दिक्पाल पूजा कहते हैं।
इस अनुष्ठान में मन्त्रोच्चार आदि की क्रिया गुरु भगवन्त या विधिकारक के द्वारा की जाती है और पूजादि सामग्री का अर्पण स्नात्रकार अथवा लाभार्थी परिवार द्वारा किया जाता है। दिक्पाल पूजा की अवधारणा कब से और क्यों?
आमन्त्रित एवं आगन्तुक अतिथि का सत्कार आदि करना सामान्य लोक व्यवहार है। लोकाचार का पालन करने पर आगत अतिथि प्रसन्न और प्रमोदचित्त पूर्वक रहता है और उन्हीं भावों में पुन: लौटता है। ___ जब दिक्पालों के आह्वान एवं स्थापन की प्रक्रिया का उद्भव हुआ तब उनकी तुष्टि हेतु द्रव्योपचार करना भी आवश्यक होने से उनके पूजन की