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________________ 584... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन व्यस्त है कि उसे धर्म कार्यों के लिए समय नहीं है। पर विशेष धार्मिक प्रसंगों या प्रतिष्ठा आदि अनुष्ठानों में सकल संघ पूर्ण मनोयोग से जुड़ने का प्रयास करता है। यदि विधिकारक वर्ग परार्थ एवं परोपकार की भावना से समाज के रुचिवन्त एवं अग्रगण्य नर-नारियों को पूर्ण जानकारी देते हुए इन क्रियाकलापों से जोड़ने एवं आगे बढ़ाने का प्रयास करें तो श्रावक वर्ग इसमें जागरूक बन सकता है। विधिकारक भी 'सवि जीव करूं शासन रसी' की भावना से तीर्थंकर नामकर्म का उपादान पुष्ट कर सकते हैं। सामान्य वर्ग के जुड़ने से क्रिया सम्यक रूपेण एवं शांतिपूर्वक सम्पन्न हो सकती है। प्रतिष्ठा आदि अनुष्ठानों का संघ और समाज के विकास एवं संघटन आदि पर भी विशेष प्रभाव पड़ता है। विधिकारकों द्वारा विधि रहस्यार्थ पूर्वक तथा पूर्ण मनोयोग से करवाई गई शुद्ध क्रिया इसमें निमित्तभूत बनती है। विधिकारकों का आचार पक्ष एवं ज्ञान पक्ष सुदृढ़ होना चाहिए। उन्हें अपने सहयोगी विधिकारक वर्ग को भी आगे बढ़ाने एवं प्रत्येक कार्य में निष्णात करने की भावना रखनी चाहिए। इस प्रकार विधिकारकों को सभी क्रियाएँ शास्त्रोक्त एवं शुद्ध आशय युक्त परोपकार के भाव से करवानी चाहिए। • प्रतिष्ठा आदि में विधिकारकों का स्थान साधु-साध्वियों से बढ़कर होता है? __ प्रतिष्ठा आदि महोत्सवों में विधिकारक साधु-साध्वी एवं स्नात्रकार के अपवाद (Substitute) होते है अत: उनका स्थान साधु-साध्वी से ऊपर हो ही नहीं सकता और वैसे भी श्रावक का स्थान हमेशा साधु-साध्वी से निम्न होता है। वर्तमान में बढ़ते क्रियाकांड, श्रावक वर्ग की अनभिज्ञता एवं साधु-साध्वियों की अल्पता के कारण विधिकारक क्रिया-अनुष्ठान के मुख्य अंग बन गए हैं। पर जहाँ साधु-साध्वी उपस्थित हों वहाँ साधु-साध्वी का स्थान ही प्रमुख होना चाहिए। यदि कोई अज्ञानवश अथवा अहंकारवश ऐसा आचरण करते हों तो सचेत हो जाएं। वरना आराधना का कार्य विराधना में हेतुभूत बन सकता है। • प्रतिष्ठा-विधियों में क्रान्तिकारी परिवर्तन कब से और कैसे? पूज्य कल्याणविजय गणि के अनुसार प्रतिष्ठा-विधियों में लगभग चौदहवीं शती से क्रान्ति आरम्भ हो गयी थी। बारहवीं शती तक प्रत्येक प्रतिष्ठाचार्य विधि-कार्य में सचित्त जल, पुष्पादि का स्पर्श और सुवर्ण मुद्रादि धारण करना
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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