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प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधि-विधानों का ऐतिहासिक... ...583 के लिए यह नितांत आवश्यक है कि विधि-विधानों से सम्बन्धित मन्त्रों के उच्चारण शुद्ध रूप से गुरुगमपूर्वक सीखें। इसी के साथ उन्हें विधि मंत्र आदि के अर्थ, रहस्य, प्रयोजन आदि का भी ज्ञान होना चाहिए। कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि बोलियों एवं भजन आदि में अधिक समय दिया जाता है और मंत्रोच्चार के भाग को फटाफट निपटाया जाता है जो कि सर्वथा अनुचित है। अत: विधिकारकों से अनुरोध है कि वे मंत्रोच्चार शुद्धि पर अवश्य ध्यान दें।
• पूजन-महापूजन में परमात्मभक्ति एवं गुणगान की अपेक्षा देवी-देवताओं की महिमा एवं चमत्कारों का बखान करना क्या औचित्यपूर्ण है? __गृहस्थ का ध्येय प्राय: लौकिक सुखों की प्राप्ति रहता है। इन्हीं सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के लिए देवी-देवताओं को मनाना-रिझाना उन्हें प्रिय होता है। सामान्य जनता के रुझान को देखते हुए आजकल देवी-देवताओं एवं लौकिक वांछापूर्ति से सम्बन्धित अनुष्ठान अधिक होने लगे हैं। इन सब अनुष्ठानों से वीतरागता एवं सम्यक्त्व का उपासक मिथ्यात्व की ओर अभिमुख हो रहा है। विधिकारक भी लोकैषणा एवं प्रसिद्धि के वशीभूत होकर लोकप्रवाह का अनुकरण करते हुए ऐसे अनुष्ठानों को विकसित कर रहे हैं। आज जिनशासन प्रभावना का मुख्य कार्यभार विधिकारकों पर है। अपने दायित्व एवं पद के प्रति जागरूक रहते हुए उन्हें जिनधर्म के मूल उद्देश्यों को लक्ष्य में रखकर ही क्रिया-अनुष्ठान करवाने चाहिए तथा भ्रान्त जनता को भी सत्य से अवगत करवाना चाहिए। आजकल पार्श्व-पद्मावती पूजन में मुख्य गुणगान एवं चढ़ावे पद्मावती देवी के ही होते हैं। नवग्रह पूजन, भैरव पूजन, घंटाकर्ण पूजन आदि में लोगों का जो समूह उमड़ता है, वह सामान्य परमात्म पूजन में नहीं देखा जाता। ऐसी भ्रान्त मान्यताओं का उन्मूलन होना चाहिए। इस कार्य में विधिकारक वर्ग अहम भूमिका निभा सकता है।
जैन धर्म के उत्थान हेतु विधिकारकों से अनुरोध है कि वे आराधकों को परमात्म भक्ति से जोड़ने का सर्वाधिक प्रयास करें। श्रावक वर्ग को भी स्वाध्याय आदि द्वारा सम्यक जानकारी लेने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।
• विधिकारकों द्वारा कैसे अनुष्ठान करवाए जाने चाहिए?
विधिकारकों को जानकारी पूर्वक शुद्ध क्रिया करवाने का प्रयास करना चाहिए। वर्तमान का श्रावक वर्ग अपने व्यापारिक एवं सामाजिक कार्यों में इतना