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अध्याय-15 प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधि-विधानों का ऐतिहासिक एवं आधुनिक दृष्टि से परिशीलन
प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधि-विधानों के स्वरूप के विषय में यदि ऐतिहासिक दृष्टि से अवलोकन किया जाए तो अनेक विचारणीय तथ्य परिलक्षित होते हैं। अब तक अनेक प्रतिष्ठा कल्प भिन्न-भिन्न आचार्यों द्वारा लिखे गए है। सभी ने अपने से पूर्व के प्रतिष्ठा कल्पों को आधार तो बनाया पर उस समय में रही विचारधारा, लौकिक प्रवृत्तियाँ एवं अन्य परम्पराओं में चल रही क्रियाओं का भी उनमें समावेश होता गया। शनैः शनैः आए इन परिवर्तनों का संकलित स्वरूप आज के प्रतिष्ठा विधानों में परिलक्षित होता है जिसमें कुछ अंश तो प्राचीन प्रतिष्ठा कल्पों का है एवं कुछ अन्य प्रतिष्ठा ग्रन्थों का। कई ऐसे विधान प्रतिष्ठित कल्पों में हैं जिनका वर्तमान में भी कोई औचित्य नहीं है, तो कहीं पर अनावश्यक परिवर्तन हुए हैं। ऐसे ही कई तथ्यों पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में चिंतन करते हए उनकी समीक्षा एवं आधुनिक परिप्रेक्ष्य में उनकी आवश्यकता पर इस अध्याय में विचार करेंगे। अधुनातन श्वेताम्बर प्रतिष्ठा कल्पों का एक समीक्षात्मक अध्ययन
जैन इतिहास के मर्मज्ञ, गणिवर्या कल्याणविजयजी महाराज साहब (विक्रम की 20 वीं शती ) के अनुसंधान के आधार पर वर्तमान में कितने प्रतिष्ठाकल्प विद्यमान हैं? यह निश्चित रूप से कहना संभव नहीं है। कई प्रतिष्ठाकल्प सामाचारी ग्रन्थों, उपदेश ग्रन्थों और कथा ग्रन्थों में पृथक प्रकरण के रूप में लिखे गये हैं तो कुछेक स्वतन्त्र अस्तित्व भी रखते हैं। वर्तमान में आठ प्रतिष्ठाकल्प उपलब्ध हैं उनमें तीन सामाचारी के एक भाग के रूप में और पाँच स्वतन्त्र ग्रन्थ के रूप में गिने जा सकते हैं। इन आठ प्रतिष्ठा कल्पों का परिचय कालक्रम के अनुसार प्रस्तुत किया जा रहा है।