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542... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन श्मशान भूमि में भोजन दान की परम्परा कब से और क्यों? ___ यह क्रिया प्रतिष्ठा दिन के ठीक पूर्व रात्रि की अर्धवेला में की जाती है। यद्यपि धार्मिक प्रसंगों पर अर्धरात्रि में भोजनदान आदि से सम्बन्धित कोई भी क्रिया करना उचित नहीं है तदुपरांत अपवाद बहुल कुछ कर्म किये जाते हैं। यह भोजन श्मशानवासी भूत, व्यन्तर, पिशाच, राक्षस आदि प्रेतात्माओं को प्रसन्न एवं तुष्ट करने के उद्देश्य से दिया जाता है। ये देवता अर्धरात्रि में जागृत रहते हैं।
परम्परानुमत विश्वास यह है कि इन प्रेतात्माओं को सन्तुष्ट रखने से जिनालय एवं जिनबिम्ब की सदा रक्षा होती है। यह क्रिया शास्त्रोक्त नहीं है, बल्कि विगत कुछ वर्षों से ही प्रारम्भ हुई है। ___विधिकारकों के मतानुसार इस क्रिया को सम्पन्न करने के लिए बारह, सोलह या इक्कीस मिट्टी के सकोरों में खाद्य सामग्री भरकर उन्हें एक डिब्बे में रख देते हैं। फिर पाँच या सात निर्भीक श्रावक श्मशान भूमि में जाकर भूतादि को निमन्त्रित करते हए डिब्बे को खुला छोड़कर अपने स्थान की ओर लौट आते हैं। रक्षा पोटली क्यों बांधनी चाहिए?
प्रतिष्ठा के पूजा विधानों में रक्षा पोटली बांधने की भी एक परम्परा है। वर्तमान में इसका प्रचलन दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। कई व्यक्तियों के मानस पटल पर विचार उभरते हैं कि रक्षा पोटली क्या है और इसे क्यों बांधते हैं? इसके नाम से इतना तो स्पष्ट है कि यह हमारी रक्षा करती है।
रक्षा पोटली में सरसव या उसकी राख बांधते हैं। सरसों में आसुरी शक्तियों को निरस्त करने एवं अनिष्ट देवों को पराजित करने की अद्भुत क्षमता है। इस पोटली के बंधे रहने से भी असम्भावित विघ्नों से रक्षा होती है।
बृहद महापूजनों में मदनफल-मरडाशिंगी भी बाँधते हैं। ये औषधियाँ भी दुष्ट शक्तियों से संरक्षण करती हैं। घण्ट नाद क्यों करना चाहिए? __ कृत्रिम-अकृत्रिम प्रकार के चैत्यों एवं सर्व परम्पराओं के मन्दिरों में घण्ट नाद किया ही जाता है। इन घण्टों के निर्माण, आकार, नाप आदि के विशेष वैज्ञानिक नियम है, जो इनसे निःसृत ध्वनि को प्रभावी बनाते हैं। इसी कारण तीनों लोकों के समस्त जिनालयों में घण्टनाद अवश्य किया जाता है।