________________
प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य विधियों का बहुपक्षीय अध्ययन ...501 ही प्रतिमा में वीतराग तत्त्व रूप परम चैतन्य का अवतरण होता है। इस विधि में किसी भी तरह की असावधानी नहीं चल सकती है।
अंजनशलाका का अर्थ- आचार्य भगवन्त के द्वारा जिनबिम्ब के नेत्र युगल में स्वर्ण की शलाका से मंत्र योग पूर्वक अंजन क्रिया करना अंजनशलाका कहलाता है। द्वितीय अर्थ के अनुसार प्रभु प्रतिमा में अरिहंत परमात्मा की सर्वोच्च शक्ति को संचरित करने का अनुष्ठान अंजनशलाका कहा जाता है। तृतीय अर्थ के अनुसार अंजन शलाका का शाब्दिक विवेचन इस प्रकार है_ 'अंजन' अर्थात नेत्रों में लगाने का सुंदर पदार्थ, एक प्रकार का सुरमा या नेत्रांजन और ‘शलाका' का अभिप्राय स्वर्णशलाका से है। आचार्य भगवन्त सुवर्ण की शलाका से बिम्ब के नेत्रों में अंजन करते हैं।
यद्यपि अंजनशलाका का एक स्वतन्त्र विधान है किन्तु इसका महत्त्व इतना अधिक बढ़ चुका है कि पाँच-पाँच कल्याणकों एवं अनेक पूजा-अर्चनों के साथ मनाये जानेवाले सम्पूर्ण महोत्सव का नाम ही अंजनशलाका हो गया है। अंजनशलाका की मुख्य क्रिया से जिनबिम्बों का केवलज्ञान कल्याणक ही मनाया जाता है फिर भी समस्त महोत्सव पर इस विधि का अद्भुत प्रभाव है।
अंजनशलाका की तात्त्विक परिभाषाएँ- • जिनाज्ञा पालक गृहस्थ श्रावक के न्यायोपार्जित लक्ष्मी से शिल्पशास्त्र में पारंगत शिल्पियों द्वारा निर्मित जिनबिम्ब को वंदनीय एवं पूजनीय बनाने की आगमिक प्रणाली अंजनशलाका है।
• पाषाण की प्रतिमा में जिनेश्वर के स्वरूप का दर्शन कराने वाली विशिष्ट प्रक्रिया अंजनशलाका है।
• 'सवि जीव करूं शासन रसी' की भावना से प्राणी मात्र का हित करने वाले तीर्थंकर परमात्मा के जीवन का अनुपम परिचय देने वाला महोत्सव अंजनशलाका के नाम से पहचाना जाता है।
• भौतिकवाद के बढ़ते माहौल में भक्तिवाद की स्थापना करने वाला तथा आसक्तिवाद को तोड़कर अनंत अनन्त शक्तियों को जागृत करने वाला अनुष्ठान अंजनशलाका है।
• परम ज्योति स्वरूप तीर्थंकर परमात्मा के अलौकिक आदर्श प्रसंगों का अविस्मरणीय उत्सव अंजनशलाका है।