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________________ 502... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन इस प्रकार अंजनशलाका भव्य आत्माओं के हृदय मंदिर में प्रभु स्थापना का पुण्य मुहूर्त है, मुक्ति महल रूपी इमारत की नींव भरने का पुण्य प्रसंग है । अंजनशलाका क्यों? - अंजनशलाका अनुष्ठान तीर्थंकर परमात्मा के केवलज्ञान कल्याणक की प्रतीक है। इस क्रिया के द्वारा भौतिकवाद की जगह भक्तिवाद की स्थापना की जाती है। निःसन्देह अंजन - प्रतिष्ठा महोत्सव एक चिरस्थायी एवं भक्तिमय आंदोलन है। अंजनशलाका विधि का महत्त्व इसलिए भी है कि इस विधान के बाद ही जिनप्रतिमा पूजनीय बनती है तथा इस विधान के पश्चात कभी भी प्रक्षाल एवं पूजा बंद नहीं होती। यह प्रक्रिया जिनबिम्ब में सर्वज्ञता एवं सर्वदर्शिता का साक्षात्कार करवाती है जिससे मानव जाति वीतरागता से परिचित होकर उस मार्ग का अनुसरण कर सकती है। इससे अखण्ड श्रद्धा का वर्धन और परमात्म भक्ति के वातावरण का निर्माण होता है। जहाँ भी अंजनशलाका महोत्सव मनाया जाता है इस प्रसंग की उजवणी बहुत ही रंगीन बन जाती है। देवलोक हमें प्रत्यक्ष न होते हुए भी इस अवसर पर उसके साक्षात्कार की अनुभूति होने लगती है । इस प्रकार अंजनशलाका एक उद्देश्य पूर्ण अनुष्ठान है। अंजनशलाका का अधिकारी कौन ? - यह आगम सम्मत परम्परा है कि आचार्य पद पर आरूढ़ मुनि ही अंजनशलाका करें। इस परम्परा का आग्रह रखना समुचित है क्योंकि इस अनुष्ठान के दौरान प्रतिष्ठाचार्य में कुछ विशिष्ट योग्यताओं की अपेक्षा रखी जाती है। वस्तुतः अंजनशलाका प्रतिष्ठाकारक वाले आचार्य भगवंतों की साधना का परीक्षा काल है । इसीलिए अंजनविधि सम्पन्न करने वाले आचार्य की विशेषताओं का शास्त्रकारों ने स्वतन्त्र वर्णन किया है। प्रतिष्ठाचार्य को मंत्र-तंत्र एवं आलेखन के विधान में पारंगत होना आवश्यक है और ध्यानाभ्यासी होना भी जरूरी है। प्रतिष्ठा के सम्पूर्ण महोत्सव का प्रत्येक विधान आचार्य के निर्देशन एवं उनकी देख-रेख में ही किया जाना चाहिए, तब अंजन विधि अन्य मुनि के द्वारा कैसे की जा सकती है? यद्यपि इसमें विधिकारक और गुणनिष्पन्न गृहस्थ श्रावक भी सहयोगी बनते हैं। अंजन घोटने का कार्य
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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