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500... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन है। विधिपूर्वक की गई शिलास्थापना से निकटवर्ती क्षेत्रों के अधिष्ठायक देव भी प्रसन्न रहते हैं और सदैव उस भूमि की सुरक्षा करते हैं। शुभ समय में की गई शिला स्थापना व्यक्ति, परिवार एवं समाज के विकास में सहायक बनती है।
शिला स्थापना के लाभ- शिला स्थापना के द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर आयोजक का समय और अर्थ का शुभ कार्यों में उपयोग होता है, आन्तरिक परिणाम निर्मल बनते हैं तथा उससे पुण्य का बंधन होता है।
सामाजिक संदर्भ में यह विधान पारस्परिक सम्बन्धों में मधुरता स्थापित करता है तथा धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की वृद्धि करता है। इस प्रसंग पर कई लोगों की उपस्थिति होने से आम जनता का मन्दिर के प्रति रूझान बढ़ता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार किया जाए तो कूर्मशिला के ऊपरी भाग से जो लोहे की नली मुख्य प्रासाद तक ली जाती है। वह जिनबिम्ब आदि की बिजली आदि से रक्षा करती है।
शिला स्थापना सम्बन्धी विशिष्ट निर्देश- • जब तक भूमि शल्य रहित न हो अथवा जल का स्तर प्रारम्भ न हो तब तक भूमि को खोदना चाहिए। यह उल्लेख प्रासाद मंडन एवं अपराजित पृच्छा में प्राप्त होता है। यदि खड्डा अधिक गहरा हो जाए तो उसे पुनः शुद्ध मिट्टी आदि से भरकर चतुर्थांश जितना खाली रखना चाहिए। ___ • एक बार स्थापित की गई शिलाओं को पुन: चलित नहीं करना चाहिए, यह अशुभ का सूचक है।
• शिलाओं की ढलान उत्तर या पूर्व दिशा की तरफ रखनी चाहिए। दक्षिण एवं पश्चिम में ढलान रखना अशुभ माना गया है। • सुवर्ण का कूर्म बनाने से शल्य दोष का निवारण हो जाता है।
अंजनशलाका विधि का आगमिक स्वरूप अंजन विधि, प्रतिष्ठा का अभिन्न अंग है। इस महोत्सव में मूलनायक तीर्थंकर भगवान के च्यवन-जन्म-दीक्षा-केवलज्ञान-निर्वाण इन पाँचों कल्याणकों का विशेष उत्सव मनाया जाता है फिर भी सम्पूर्ण महोत्सव को अंजनशलाका महोत्सव कहते हैं, क्योंकि समस्त उत्सव का प्राण अंजनशलाका है। इसका मूल विधान आचार्य के द्वारा गुप्त रूप से किया जाता है और उस प्रक्रिया के द्वारा