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________________ 410... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन 3. जीर्णोद्धार करवाते समय यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि जीर्णोद्धार योग्य वास्तु जिस आकार अथवा परिमाण की हो नवीन वास्तु उसी आकार एवं मान की रखें। यदि पूर्व वास्तु को परिमाण से कम किया जाये तो हानि होती है और मान से अधिक करने पर स्वजन हानि की सम्भावना रहती है अतएव माप का परिवर्तन नहीं करें।45 4. जीर्णोद्धार का कार्य प्रभु के समक्ष निश्चित अवधि का संकल्प लेकर करें। 5. जीर्णोद्धार के लिए वेदी से प्रतिमाओं के उठाने का कार्य शुभ लग्न एवं शुभ मुहूर्त में विधिवत करें। ऐसा करने से कार्य निर्विघ्न सम्पन्न होता है। यदि प्रतिमा की उत्थापन विधि अनुचित तरीके से की जाये तो भीषण संकटों का सामना करना पड़ सकता है। यह कार्य बिना विधि के मात्र भावावेश में कदापि न करें। 6. मिट्टी का देवालय यदि आकार रहित होकर गिर गया हो तो उसे गिराकर नया बनायें। पाषाण का देवालय तीन हाथ जितना ऊँचा और काष्ठ का देवालय डेढ़ हाथ जितना ऊँचा रह गया हो तो उसे जीर्ण होने की स्थिति में गिराकर नया करवायें, किन्तु उपरोक्त परिमाण से अधिक ऊँचा हो तो ऐसे मन्दिर को नहीं गिरायें।46 अनावश्यक जीर्णोद्धार के दुष्फल जीर्णोद्धार का निर्णय करने से पूर्व निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना अनिवार्य है शिल्परत्नाकर के उल्लेखानुसार 1. यदि देवालय को अच्छी स्थिति में रहने के बाद भी उसे जीर्णोद्धार अथवा नवीनीकरण के नाम पर गिराया अथवा विस्थापित किया जाये तो उसके दुष्परिणाम हासिल हो सकते हैं। इससे देवालय विस्थापन करने वाला और विस्थापन करवाने वाला दोनों ही चिरकाल दुःख भोगते हैं।47 2. निष्प्रयोजन स्थापित देवालय का कदापि विस्थापन न करें। क्योंकि अचल प्रतिमा को चलित करने पर राष्ट्र में विभ्रम या विप्लव होने की संभावना बनती है तथा अल्पकाल में ही देश का विच्छेद हो जाता है। साथ ही प्रतिमा उत्थापनकर्ता का कुल नष्ट होता है, स्त्री एवं पुत्र मृत्यु पाते हैं और ऐसा पूजक भी छह माह में काल ग्रसित हो जाता है।48
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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