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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...409 8. पुरानी उपयोग की हुई लकड़ी का गृहचैत्य न बनायें, नये काष्ठ से ही
निर्मित करें। 9. सैप्टिक टैंक के ऊपर गृह चैत्य न बनायें। 10. शौचालय, कचरा घर, जूते-चप्पल आदि के निकट भी गृह चैत्य न बनायें।
॥ इति गृह चैत्य निर्माण विधि ।।
जीर्णोद्धार विधि प्राकृतिक जगत का अटल नियम है कि एक निश्चित अवधि के पश्चात पौद्गलिक वस्तुओं में परिवर्तन होता है। शरीर, मकान, दुकान, कपड़ा, भोजन, आभूषण आदि में सहज बदलाव आता है। यद्यपि इनमें मकान या मन्दिर एक ऐसी वस्तु है जिसका पुनर्निर्माण किया जा सकता है। इसी तरह पर्याप्त काल के उपरान्त प्रतिमाएँ भी जर्जरित/क्षीण होने लगती है। अंगोपांग घिसने से बिम्ब का स्वरूप बदल जाता है। ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर दो विकल्प खड़े होते हैं1. नवीन मन्दिर का निर्माण और 2. प्राचीन मन्दिर का जीर्णोद्धार।
वास्तुशास्त्र के आधार पर नूतन मन्दिर से भी जीर्णोद्धार का अधिक महत्त्व है। ऐसा करने से प्राचीन वास्तु के साथ पुरातत्त्व स्थापत्य की सुरक्षा हो जाती है तथा जीर्ण वास्तु का समयोचित उद्धार करवा देने पर उसकी आयु में वृद्धि होती है। जीर्णोद्धार के सम्बन्ध में आवश्यक निर्देश 1. जीर्णोद्धार करवाते समय यह ध्यान देना आवश्यक है कि मन्दिर वास्तु
यदि अल्प द्रव्य से निर्मित हो तो उससे अधिक द्रव्य की वास्तु का निर्माण करें। जैसे कि पूर्व की वास्तु मिट्टी की हो तो काष्ठ की बनाएँ, यदि काष्ठ की हो तो पाषाण की बनाएँ, यदि पाषाण की हो तो धात् की बनाएँ और धातु की हो तो रत्न की बनाएँ। इस निर्देश का मूल हार्द यह
है कि श्रेष्ठतर द्रव्य का उपयोग किया जाये।43 2. शिल्प रत्नाकर के अनुसार मंदिर निर्माण अथवा जीर्णोद्धार के लिए
किसी अन्य वास्तु का गिरा हुआ ईंट, चूना, गारा, पाषाण, काष्ठ आदि का प्रयोग नहीं करें। आचार्यों के मत से ऐसा करने पर देवालय सूने पड़े रहते हैं और उनमें पूजा नहीं होती।44