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404... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन जगह पर पंचरत्न रखें तथा वस्त्र मंत्र से वासचूर्ण डालें। फिर नन्द्यावर्त मण्डल का विसर्जन करें। यह जलपट्ट की प्रतिष्ठा विधि है।
तोरण प्रतिष्ठा- तोरण प्रतिष्ठा करते समय सर्वप्रथम जिनबिम्ब की स्नात्र पूजा करें। फिर निम्न मुकुट मंत्र का स्मरण कर द्वादश मुद्रा से अभिमंत्रित वासचूर्ण को तोरण पर डालें____ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ......... हकार पर्यन्तं नमो जिनाय सुरपतिमुकुटकोटिसंघट्टितपदाय इति तोरणे समालोकय-समालोकय स्वाहा। यह तोरण प्रतिष्ठा की विधि है।33
चैत्यद्वार प्रतिष्ठा विधि चैत्य के द्वार का आरोपण विधि पूर्वक करना चाहिए, क्योंकि द्वार चैत्य का मुख है। शुभ द्वार वाला चैत्य शुभ फलदायक होता है। कल्याण कलिका के अनुसार चैत्यद्वार की प्रतिष्ठा विधि निम्नानुसार है
• जिनालय में दरवाजा लगाने से पहले उसका अभिषेक करें। फिर अधिवासना पूर्वक उसके अंगों में देवताओं का न्यास करें। इसे द्वार प्रतिष्ठा कहते हैं।
• सर्वप्रथम चैत्य द्वार की प्रतिष्ठा का मुहूर्त निश्चित करें। प्रतिष्ठोपयोगी औषधियाँ आदि सामग्री पहले से ही तैयार कर रखें। मुहूर्त के दिन सबसे पहले मंत्रोच्चार पूर्वक प्रासाद के द्वारपालों की सुगन्धित द्रव्य से पूजा करें। प्रासाद के प्रत्येक दिशा के द्वारपाल भिन्न-भिन्न होते हैं इसलिए जिस दिशा का प्रासाद हो उस दिशा के द्वारपाल की पूजा करें।
• पूर्वादि दिशामुख जैन प्रासादों के द्वारपाल के नाम अनुक्रमश: ये हैं- 1. इन्द्र 2. इन्द्रजय 1. माहेन्द्र 2. विजय 1. धरणेन्द्र 2. पद्म 1. सुनाभ 2. सुरदुंदुभि। इस तरह प्रत्येक दिशा के दो-दो द्वारपाल होते हैं अत: चैत्य का मुख जिस दिशा की ओर हो उस दिशामुख द्वार के द्वारपाल युगल की नाम मंत्र पूर्वक वासक्षेप पूजा करें। उसकी विधि इस प्रकार है
1. पूर्वमुख द्वारे- ॐ इन्द्राय नमः ॐ इन्द्रजयाय नमः 2. दक्षिणमुख द्वारे- ॐ माहेन्द्राय नमः ॐ विजयाय नमः 3. पश्चिममुख द्वारे- ॐ धरणेन्द्राय नमः ॐ पद्माय नमः 4. उत्तरमुख द्वारे- ॐ सुनाभाय नमः ॐ सुरदुन्दुभय नमः उक्त पूजन में प्रथम नाम का मन्त्रोच्चार करते समय स्वयं के दाहिनी तरफ